Wednesday 9 September 2020

उभयलिंगी ट्रंस्जेंड़र समुदाय एवं उनके शैक्षिक अधिकार( शिक्षा में नवाचार एवं नवीन प्रवृतियां)

उभयलिंगी ट्रंस्जेंड़र समुदाय एवं उनके शैक्षिक अधिकार 


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ट्रांसजेंडर समुदाय बरसों से उपेक्षित दृष्टि से देखा जाता रहा है उनके साथ सामान्य व्यवहार नहीं होता था ट्रांसजेंडर व्यक्ति लैंगिक आधार भिन्नता के रूप मे देखा जाता था । जो लिंग उन्हें प्राकृतिक रूप से प्राप्त होते हैं इसलिए इन्हें ट्रांससेक्सुअल भी कहते हैं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले अप्रेल 2014 के द्वारा ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में पहचान देने की बात रखी। इसके पूर्व उन्हें मजबूरी वश अपना जेंडर बताना पड़ता था किसी भी शैक्षिक संस्थान में उन्हे प्रवेश लेने मे समस्या का सामना करना पड़ता था । सुप्रीम कोर्ट के प्रयास से इन्हे थर्ड जेंडर की पहचान दी जाए अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि किन्नरों या थर्ड जेंडर की पहचान का कोई कानून ना होने की वजह से उनके साथ शिक्षा और नौकरी के लिए कोई भेदभाव ना किया जाए साथ ही सरकारों को यह निर्देश भी दिए गए कि वे ट्रांसजेंडर के लिए सामाजिक आर्थिक स्तर पर सर्वे कर रिपोर्ट प्रस्तुत करें उनके स्तर मे विकास हेतु प्रयास करें।

भारतीय संविधान में उनके अधिकार

सभी व्यक्तियों की विधि के समक्ष समता ।
लिंग के आधार पर विभेद का प्रति षेध।
इस प्रकार लिंग के आधार पर संविधान विभेद नहीं करता किंतु ट्रांसजेंडर हेतु लिंगीय अस्पष्टता के चलते संविधान द्वारा प्राप्त हक भी अस्पष्ट रह जाते हैं सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के क्रम में इस तरह के व्यक्ति के कल्याण और प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल समिति ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति विधेयक 2016 को मंजूरी प्रदान की इस विधेयक का उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक आर्थिक शैक्षणिक सशक्तिकरण हेतु एक ढांचा को विकसित करना है जिससे उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने तथा उनके साथ होने वाले भेदभाव और हीन भावना को रोकने में सहायता मिले। इस विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 20 जुलाई 2016 को मंजूरी प्रदान की

विधेयक ऐसे व्यक्तियों को ट्रांसजेंडर के रूप में परिभाषित करता है जो
ना तो पूर्णता स्त्री हैं और ना ही पुरुष स्त्री एवं पुरुष के संयोजन हैं जन्म के समय लिंग का समानुदेशीत लिंग से मेल न खाना । इस विधि द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपनी पहचान हेतु प्रमाण पत्र प्राप्त करने का अधिकार होगा ऐसे व्यक्ति अपने पहचान प्रमाण पत्र के लिए जिला मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकेंगे किंतु अवयस्क हेतु आवेदन पत्र स्वयं नही बल्कि माता-पिता या संरक्षक द्वारा ही किया जाएगा जिला मजिस्ट्रेट द्वारा प्राप्त आवेदन जिला छानबीन समिति को भेजा जाएगा डीएससी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी जिला समाज कल्याण अधिकारी एक मनोचिकित्सक उभयलिंगी समुदाय का एक प्रतिनिधि तथा सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी होगा जिला मजिस्ट्रेट जिला छानबीन समिति की सिफारिश पर आवेदक के लिंग को ट्रांसजेंडर के रूप में उपदर्शित करते हुए एक प्रमाण पत्र जारी करेगा । इस विधेयक के पारित होने से सरकार या निजी संस्थान मे रोजगार के मामले के साथ-साथ भर्ती प्रोन्नति आदि में ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं कर सकेगा यह के संस्थानों में प्रवेश लेने स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने , अनुचित व्यवहार रोकने व सार्वजनिक स्थलों तक पहुंचने को सुनिश्चित करने तथा कहीं भी निवास करने तथा संपत्ति का उपभोग करने के साथ ही इन्हे जनप्रतिनिधि पद धारण करने का अधिकार भी देगा। ऐसे व्यक्तियों को शिक्षा खेल एवं मनोरंजन की सुविधा हेतु भेद नहीं किया जाएगा सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पूर्ण और प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने तथा समाज में उचित ढंग से समायोजित होने हेतु कदम उठाएगी।सरकार ऐसी कल्याणकारी योजनाओं तथा कार्यक्रमों का निर्माण करें जिससे समाज में ट्रांसजेंडर के प्रति संवेदनशीलता बड़े उन्हे भी सम्मान की दृष्टी से देखा जाए । विधेयक में राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद का गठन का प्रावधान है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री तथा उपाध्यक्ष सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री तथा राज्य मंत्री होंगे इस परिषद के अन्य सदस्यों का कार्यकाल उनकी नियुक्ति की तिथि से 3 वर्ष का होगा इस विधेयक में सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का प्रावधान किया गया है ज्ञातव्य है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति के संबंधी विधेयक राज्य सभा संसद तिरुचि शिवा द्वारा पेश किया गया था, जिसे राज्यसभा ने 24 अप्रैल 2015 को मंजूरी प्रदान की फिर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री गहलोत ट्रांसजेंडर व्यक्ति विधेयक 2016 को 2 अगस्त 2016 को लोकसभा में प्रस्तुत किया ।
ट्रंस्जेंडर व्यक्ति को बंधुआ मजदूरी करने के लिए या भीख मांगने के लिए या कोई उपेक्षित कार्य करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता उन्हें उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित करने या उन्हें उनके घरों तथा गांव से जबरन निकलने के दोषी पाए जाने वाले लोगों के लिए न्यूनतम 6 व अधिकतम 2 वर्ष की कैद और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

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