Sunday 13 December 2020

आदर्शवाद और शिक्षक

  आदर्शवाद और शिक्षक

आदर्शवादी विचारकों के अनुसार शिक्षक का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षक ही वह व्यक्ति है जो अपने ज्ञान आदर्श अनुभव और सद्गुणों से बालक को प्रभावित करता है और उसके आदर्श व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक होता है यही कारण है कि फ्रोबेल ने एक अध्यापक को माली के समान बताया है उनके अनुसार जिस प्रकार बगीचे में लगे पौधे को उचित पोषण के लिए माली की आवश्यकता होती है उसी प्रकार विद्यालय में अध्यापक भी बालकों के लिए उपर्युक्त शैक्षिक वातावरण प्रस्तुत करके उनके विकास में सहायक होता है।

 आदर्शवाद और विद्यालय

आदर्श वादियों के अनुसार विद्यालय एक सर्वाधिक शिक्षा का केंद्र है इसे हर प्रकार से आदर्श होना चाहिए विद्यालय का शैक्षिक और सामाजिक परिवेश आदर्श पूर्ण होना चाहिए वहां के आचार्य और प्राचार्य चरित्रवान और अनुकरणीय होने चाहिए तथा वहां का भौतिक परिवेश भी सुंदर अनुभूति वाला होना चाहिए इस प्रकार से आदर्शवादी विचारक विद्यालय में अनुशासन और आदर्श को सु विकसित करने पर बल देते हैं।

आदर्शवाद और शिक्षार्थी

आदर्शवादी विचारक शिक्षा को बाल केंद्रित नहीं मानते उनके अनुसार शिक्षा आदर्श और विचार केंद्रित होनी चाहिए आदर्श शिक्षा में शिक्षार्थी का मार्ग निर्देशन इस प्रकार करता है कि बालक स्वयं ही अपनी अंतर्निहित शक्तियों को पहचान सके और उच्च आदर्शो और विचारों को प्राप्त करने में समर्थ हो सके।

आदर्शवाद और अनुशासन

आदर्श वाद विचारक शिक्षा में प्रभाव आत्मक अनुशासन के कठोर पक्षपाती थे उनका विश्वास था कि अनुशासन में रहकर बालक का पूर्ण विकास संभव है अनुशासन के द्वारा ही वह आत्मानुभूति कर सकता है और उसके आध्यात्मिक गुणों का विकास हो सकता है आदर्शवाद विचारक अनुशासन पर बल देते थे परंतु वह धनात्मक अनुशासन के पक्ष में नहीं होते थे क्योंकि इसके द्वारा बालक का विकास अवरूद्ध हो सकता है

आदर्शवाद के गुण

आदर्शवादी शिक्षा में बालकों को सर्वमान्य मूल्यों को विकसित करने पर बल दिया गया शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण विस्तृत रूप में किया गया आदर्श शिक्षक शिक्षक को सर्वोपरि मानते हैं आदर्शवाद धनात्मक अनुशासन का विरोध करता है और आत्मानुशासन के सिद्धांत पर बल देता है आदर्शवाद शिक्षा में व्यक्ति और समाज दोनों को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों को समान महत्व दिया गया है आदर्शवाद शिक्षा बाल केंद्रित नहीं थी लेकिन इसमें बालक के व्यक्ति का आदर किया जाता है आदर्शवाद शिक्षा आध्यात्मिक और धार्मिक नैतिक गुणों पर बल देता है।

आदर्शवाद के दोष

आदर्शवादी शिक्षा सैद्धांतिक अधिक थी और व्यवहारिक कम वर्तमान युग भौतिक युग है आज व्यक्ति के सामने विभिन्न प्रकार की भौतिक समस्याएं जिनके समाधान के लिए भौतिक विषयों को ही पढ़ाए जाने की आवश्यकता है परंतु आदर्शवाद में अध्यात्म पर ही अधिक बल दिया जाता है जो आज के समय की समस्याओं के लिए बिल्कुल उचित नहीं थी आदर्शवाद में शिक्षा बाल केंद्रित नहीं थी शिक्षक को ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था आदर्श वादियों ने शिक्षा को किसी निश्चित शिक्षण विधि का प्रतिपादन नहीं किया आदर्शवाद शिक्षा के पाठ्यक्रम में व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन से संबंधित विषयों को ही महत्व दिया जाता था।


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Thursday 10 December 2020

प्लेटो का शैक्षिक दर्शन part 5

 प्लेटो का शैक्षिक दर्शन



शिक्षा का अर्थ

प्लेटो के अनुसार शिक्षा से अभिप्राय उस प्रशिक्षण से है जिससे अच्छी आदतों के द्वारा बालकों में नैतिकता का विकास होता है इन्होंने शिक्षा को एक नैतिक शिक्षण माना है जिनके द्वारा व्यक्ति की प्रवृत्तियों को सुधारा जा सकता है यह भी शिक्षा को सत्यम शिवम सुंदरम का साधन मानते हैं

शिक्षा के उद्देश्य

1  ईश्वर को जानना शिक्षा का यह दायित्व है कि वह बालक को इस योग्य बनाएं कि वह ईश्वर के साथ आत्मसाक्षात्कार कर सकें।
2  सत्यम शिवम सुंदरम के प्रति आस्था को उत्पन्न करना प्लेटो ने शिक्षा का प्रारंभिक उद्देश्य सत्यम शिवम सुंदरम को विकास माना है तथा उसे प्रारंभिक शिक्षा के समान ही प्राप्त करने पर बल दिया है
3   व्यक्तित्व का विकास करना प्लेटो के अनुसार शिक्षा द्वारा ऐसा जीवन निर्माण करना है जो प्रेम न्याय और सौंदर्य का जीवन हो
4   नागरिकता के गुणों का विकास मानव जीवन में संतुलन स्थापित करना
5  शिक्षा का लक्ष्य बालक द्वारा मानव में व्याप्त विरोधी तत्व को पहचानना तथा इसमें संतुलन स्थापित करना होना चाहिए

शिक्षा की पाठ्यचर्या

प्लेटो प्रथम शिक्षा शास्त्री हैं फिर दार्शनिक हैं प्लेटो के अनुसार पहले वर्षों में अंकगणित जेमिति संगीत नक्षत्र विद्या की कुछ बातें सीखनी चाहिए माध्यमिक स्तर पर वह खेलकूद व्यायाम शैक्षिक प्रशिक्षण गणित कविता तथा धर्म शास्त्र के शिक्षा पर बल देते हैं उच्च स्तर की पाठ्यचर्या में प्लेटो DIELECTRIC को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान देते हैं जिसका अर्थ होता है सत्य की खोज इसी के प्रशिक्षण से व्यक्ति दार्शनिक बन सकता है।

प्लेटो के अनुसार शिक्षण विधि

  • वाद विवाद विधि
  • प्रश्नोत्तर विधि
  •  वार्तालाप विधि 
  • प्रयोगात्मक विधि 
  • स्वाध्याय विधि

प्लेटो के अनुसार शिक्षक

प्लेटो ने शिक्षक को महत्वपूर्ण स्थान दिया है उनके अनुसार शिक्षक आदर्श गुणों से युक्त और अनुभवी होना चाहिए जिससे वह शिक्षा का कार्य अच्छे से कर सकें प्लेटो स्वयं शिक्षक थे इन्होंने दार्शनिकों को ही समाज का कर्णधार माना है।

प्लेटो के अनुसार अनुशासन

प्लेटो का विश्वास था कि बालक स्वभाव से ही नियमों में बंधा नहीं रहना चाहता नियंत्रण में रखने के लिए उसे दंडवा पुरस्कार भी देना चाहिए प्लेट को मुक्त आत्मक अनुशासन के विरोधी थे इनके अनुसार बालक को एक निश्चित सीमा में स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए।

प्लेटो के अनुसार विद्यालय

प्लेटो ने शिक्षा की प्रेरणा सुकरात से ली थी। प्लेटो ने एकेडमी नामक संस्था को शिक्षा प्रदान करने का केंद्र बनाया क्योंकि यह निश्चित स्थान पर शिक्षा प्रदान करने के समर्थक थे इनके अनुसार विद्यालय मानवीकरण एवं सामाजिकरण करने वाली संस्था है जो बालक को सहयोगी और सामाजिक जीवन व्यतीत करने की कला सिखाती है

 प्लेटो का शिक्षा में योगदान

प्लेटो ने ही सबसे पहले चश्मा अवस्था से लेकर संपूर्ण जीवन शिक्षा योजना सुव्यवस्थित ढंग निर्मित करके प्रस्तुत की।

 प्लेटो ने शिक्षा में आदर्शवादी दृष्टिकोण का समावेश किया ।प्लेटो ने शिक्षा को बुद्धि विभेद के आधार पर देने की योजना प्रस्तुत की ।

प्लेटो ने संगीत की शिक्षा व शारीरिक शिक्षा को समझने का प्रयास किया ।

प्लेटो ने स्त्रियों और पुरुषों को शिक्षा में समान स्थान देने की बात की उनका यह विचार आधुनिक विचारधारा के अनुकूल है।

 प्लेटो ने शिक्षा संबंधी सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप प्रदान किया इसके लिए उन्होंने अकैडमी नामक संस्था की स्थापना की। प्लेटों दार्शनिकों में एक बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं।

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Monday 7 December 2020

शिक्षा में आदर्शवाद प्लेटो का जीवन परिचय part 5

 शिक्षा में आदर्शवाद 
प्लेटो का जीवन परिचय 


मुख्य पुस्तकेे
  • द रिपब्लिक
  •  द लॉज
  • प्रोटागोरस
  • सिंपोजियम
  • टिमियस
  • क्रिटिक्स
  • क्राइटो
  • एपालॉजी
  • द स्टेटस मैन

 शिक्षा में आदर्शवाद

 

पाश्चत्य शिक्षा के इतिहास में प्लेटो  का महत्वपूर्ण स्थान है प्लूटो का जन्म 427 ईसा पूर्व एथेंस में हुआ था इनके पिता का नाम एयरस्टोन था इनका जन्म एथेंस के एक कुलीन परिवार में हुआ था जिसके कारण उनका प्रारंभिक नाम एरिस्टोकिल्स पड़ा बाद में वे प्लेटो के नाम से विख्यात हुए प्लेटो बचपन से ही प्रतिभावान बालक थे कविता, ग्रीक साहित्य ,दर्शन एवं खेलों में उनकी विशेष रूचि थी प्रारंभ में हेराक्लीटस के शिष्य क्रेटीलस से प्लेटो ने शिक्षा प्राप्त की थी 20 वर्ष की अवस्था में उसने अपने गुरु सुकरात से भेंट की और लगभग 8 वर्ष तक उनके संपर्क में रहा उसके किशोर एवं फ्रॉड मस्तिष्क पर सबसे अधिक प्रभाव सुकरात का पड़ा इनके शिक्षा संबंधी विचारों पर सुकरात  सोफ़िटो, स्पार्टा की शिक्षा पद्धति तथा एथेंस की तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों का विशेष प्रभाव पड़ा 399 ईसवी पूर्व में सुकरात के दिए गए मृत्युदंड से आहत लेटर में एथेंस छोड़ दिया था 40 वर्ष की अवस्था में वह पूर्ण स्वदेश लौटा और वहां 386 ईसवी पूर्व में इसमें एक शिक्षा पीठ खोला जिसमें वह जीवन पर्यंत अध्ययन कार्य करते रहें शिक्षा पीठ महिला दोनों के लिए खुला था तथा इसमें दर्शनशास्त्र गणित और विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी मानव विज्ञान के अध्ययन के लिए स्थाई संस्था के रूप में प्लेटो ने शिक्षा पीठ स्थापित किया था उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना भी की इनकी मृत्यु 347 ईसवी पूर्व में हुई 


प्लेटो की प्रमुख रचनाएं

प्लेटो के दार्शनिक एवं शिक्षा संबंधी विचारों का अध्ययन उनकी कृतियों द्वारा किया जा सकता है

प्लेटो की विभिन्न पुस्तकें जिनमें निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं

शिक्षा पर जिन जिन दार्शनिक विचार धाराओं का प्रभाव पड़ा मुख्य रूप से उनकी संख्या 4 है आदर्शवाद उन्हीं में से एक प्रमुख और सबसे प्राचीन विचारधारा है। प्रारंभ से ही यह विचारधारा शिक्षा को प्रभावित करती आ रही है इस विचारधारा के मुख्य समर्थक सुकरात थी परंतु इस को विस्तृत करने का कार्य उनके शिष्य प्लेटो ने किया । 

अर्थ और परिभाषा

आदर्शवाद को अंग्रेजी में आइडियलिज्म कहते हैं यह दो शब्दों से मिलकर बना है पहला शब्द idea दूसरा शब्द lsim ।

Idea का अर्थ विचार तथा ism का अर्थ है वाद इस तरह आइडियलिज्म का अर्थ हुआ विचार वाद वास्तव में आइडियलिज्म विचार वाद होता है। 

परिभाषाएं

डीएम दत्ता के अनुसार "आदर्शवाद वह सिद्धांत है जो आध्यात्मिक सत्ता को मानता है"

रास के अनुसार "आदर्शवादी दर्शन के अनेक और विविध रूप हैं पर सब का आधारभूत तत्व यह है कि संसार का आवश्यक उत्पादन मन या आत्मा है और वास्तविक सत्य मानसिक स्वरूप का है"

आदर्शवाद के आधारभूत सिद्धांत

भौतिक जगत की अपेक्षा में आध्यात्मिक जगत की अपेक्षा अधिक हैं

आदर्श वादियों ने संपूर्ण जगत को दो भागों में बांटा है 1 भौतिक जगत 2 आध्यात्मिक जगत  इनमें से उन्होंने भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत को अधिक सत्य माना उनके अनुसार भौतिक जगत आध्यात्मिक जगत की झलक मात्र है आदर्शवादी सत्ता ही सबसे बड़ी सत्ता है जिसे समझने के लिए सारा संसार प्रयत्नशील है जिसको समझना जीवन का परम लक्ष्य है

 जड़ प्रकृति की अपेक्षा मानव प्राणी अधिक महत्वपूर्ण है

आदर्श वादियों में जड़ प्रकृति की अपेक्षा महत्व माना है क्योंकि मानव प्राणी बुद्धि युक्त है बुद्धि के द्वारा ही वह परमात्मा के चमत्कार को आभास करता है

वस्तु कीअपेक्षा विचार अधिक महत्वपूर्ण

आदर्शवाद वस्तु की अपेक्षा विचारों को विचारों को अधिक महत्वपूर्ण मानते थे उनके अनुसार विचार ही सकते और वास्तविक है वस्तु नहींं इसी सत्य और वास्तविक विचारों मेंं संपूर्ण जगत के समस्तत तत्व निहित हैं 


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Saturday 5 December 2020

शिक्षा के विभिन्न अंगों पर दर्शन का प्रभाव part 4

शिक्षा के विभिन्न अंगों पर दर्शन का प्रभाव

 शिक्षा के उद्देश्यों पर दर्शन का प्रभाव

 शिक्षा को एक स्वदेश प्रक्रिया कहां गया है क्योंकि शिक्षा का कोई ना कोई उद्देश्य जरूर होता है अन्यथा शिक्षा व्यर्थ मानी जाती है शिक्षा का उद्देश्य जीवन  के लक्ष्य पर निर्भर करता है परंतु जीवन लक्ष्य दर्शन के द्वारा निर्धारित किया जाता है दर्शन के द्वारा उद्देश्य काल तथा परिस्थितियों की विचारधारा और समाज की आवश्यकताओं के अनुसार जीवन के लक्ष्य दर्शन के द्वारा निर्धारित किए जाते हैं

उदाहरण के स्वरूप.                                                             प्राचीन काल में भारत में धर्म ही जीवन का आधार और कर्म क्षेत्र था उस समय जीवन का प्रमुख लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति था जिसकी प्राप्ति के लिए शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य आत्मशक्ति का विकास चरित्र निर्माण और आध्यात्मिक विकास माना गया है

शिक्षा के पाठ्यक्रम पर दर्शन का प्रभाव

शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम का निर्धारण किया जाता है पाठ्यक्रम पर भी दार्शनिक विचार धाराओं पर प्रभावों का पड़ना स्वाभाविक है पाठ्यक्रम का निर्माण देश या समाज की तत्कालीन विचारधाराओं के अनुकूल होता है अतः पाठ्यक्रम में उन्हीं विषयों को रखा जाता है जो उन विचारधाराओं के पोषक हूं तथा उन अवस्थाओं की पूर्ति में सहायक हो।

शिक्षण विधियों पर दर्शन का प्रभाव

शिक्षण विधियों को निर्धारित करने में भी दर्शन का बहुत प्रभाव पड़ता है इनकी सफलता उपयुक्त शिक्षण विधियों पर ही निर्भर होती है शिक्षण विधियां ही वह माध्यम हैं जिनके द्वारा छात्र और विषय सामग्री के संबंध स्थापित किए जाते हैं दर्शन का आधार ना होने के कारण शिक्षा विधि प्रभावशाली हो सकती है अतः शिक्षण विधियों का निर्माण दर्शन के आधार पर ही निर्माण किया जाना चाहिए।

 पाठ्य पुस्तकों पर दर्शन का प्रभाव

शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पुस्तकों का विशिष्ट महत्व है पुस्तकों के द्वारा ही बालकों का भावनात्मक विकास होता है और उनमें निश्चित आदर्श उत्पन्न होते हैं अतः पुस्तकों की रचना दार्शनिक विचार धाराओं को ध्यान में रखकर की जाती है दार्शनिक विचार धाराओं पर ही यह निश्चित होता है कि शिक्षा में पाठ्य पुस्तकों की आवश्यकता है कि नहीं

शिक्षक पर दर्शन  का प्रभाव

"स्पेंसर के अनुसार वास्तविक शिक्षा का संचालन दार्शनिक के द्वारा ही संभव है"

स्पष्ट है कि शिक्षक को दर्शन का अच्छा ज्ञाता होना चाहिए क्योंकि जो शिक्षक शिक्षा दर्शन को नहीं जानता वह सफलतापूर्वक शिक्षण कार्य नहीं कर सकता दर्शन के द्वारा ही शिक्षा के ज्ञान का विस्तार होता है और विचारों में परिपक्वता आती है शिक्षा के विभिन्न अंगों पर दर्शन का प्रभाव होता है और इनका संचालन शिक्षक होता है अतः निहित विचारधारा का प्रभाव शिक्षक पर पड़ना स्वाभाविक

शिक्षण संस्थानों पर दर्शन का प्रभाव

शिक्षा की औपचारिक संस्था विद्यालय तथा अनौपचारिक संस्था ग्रह और समुदाय आदि पर सभी पर दर्शन का प्रभाव होता है परिवार के सभी सदस्य अपनी शिक्षा के आधार पर अपना जीवन दर्शन निश्चित करते हैं आदर्शवादी और प्रकृति वादी विचारधारा के फल स्वरुप ही शांतिनिकेतन गुरुकुल आदि विद्यालयों की स्थापना हुई है

शैक्षिक मापन और मूल्यांकन प्रदर्शन का प्रभाव

शिक्षा में मापन और मूल्यांकन पर भी दर्शन का प्रभाव पड़ता है इस विचारधारा के प्रारंभ का श्रेय मैकाले को जाता है इनके अनुसार यदि शैक्षिक मापन को महत्वपूर्ण और प्रभावपूर्ण बनाना मां को को केवल तकनीकी ही नहीं होना चाहिए बल्कि उनके पीछे दर्शन भी होना चाहिए

अनुशासन पर दर्शन का प्रभाव

शिक्षा दर्शन का अनुशासन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है किसी देश काल में अनुशासन का स्वरूप क्या है और क्या होगा उस देश के कालवा दार्शनिक विचारधारा पर निर्भर करता है देश और काल की विचारधारा में समय-समय पर अपने ढंग से निर्धारित किया गया और उसी के अनुसार अनुशासन की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया।

निष्कर्ष 

दर्शन और शिक्षा के पारस्परिक संबंध पर विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि दर्शन और शिक्षा दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं यदि एक में परिवर्तन होता है तो दूसरे में स्वयं ही परिवर्तन हो जाता है शिक्षा के समर्थकों पर शिक्षा का प्रभाव दिखाई पड़ता है इस प्रकार दर्शन को यदि एक प्रकार का शिक्षा का मूल आधार कहा जाए तो गलत नहीं होगा।


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Wednesday 2 December 2020

शिक्षा दर्शन के उद्देश्य, पार्ट 3

 शिक्षा दर्शन के उद्देश्य

1शिक्षा दर्शन की विभिन्न अंग

शिक्षक विद्यार्थी पाठ्यक्रम शिक्षण संस्थाएं आदि पर मौलिक रूप से विचार करना

2 शिक्षा दर्शन के उद्देश्यों का निर्धारण करना

जिसके बिना शिक्षा की प्रक्रिया सफल नहीं हो सकती है शिक्षा दर्शन छात्रों को उनकी शिक्षा की ओर उन्मुख करता है शिक्षा दर्शन का एक उद्देश्य समाज या देश की संस्कृति की सुरक्षा करना है विद्यालय में उद्देश्यों के संचालन के लिए भी उचित मार्गदर्शन प्रदान करना है शिक्षा दर्शन है

शिक्षा और दर्शन में अंतर

दर्शनशास्त्र में समय-समय पर शिक्षा के विभिन्न अंगों को प्रभावित किया है अर्थात दार्शनिक विचार धाराओं में परिवर्तन के साथ साथ शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम शिक्षण विधि और पाठ्य पुस्तकों में परिवर्तन होता रहता है


शिक्षा और दर्शन का पारस्परिक संबंध

शिक्षा और दर्शन दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं दर्शन और शिक्षा में घनिष्ठ संबंध है प्राचीन काल से ही यह दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं इसी प्रकार शिक्षा ही वह साधन जिससे विभिन्न दार्शनिक विचार धाराओं का विकास हुआ है

दर्शन और शिक्षा मंत्री पर निर्भर है

दर्शन और शिक्षा में पारस्परिक संबंध होने के कारण एक दूसरे पर निर्भर है दर्शन शिक्षा के समस्त अंगों को प्रभावित करता है और शिक्षा दार्शनिक दृष्टिकोण पर नियंत्रण करती है

जेंटल के अनुसार "दर्शन की सहायता के बिना शिक्षा की प्रक्रिया सही मार्ग पर नहीं चल सकती"

 दार्शनिक विचार धाराओं को समझे बिना शैक्षिक विचार अंधकार की ओर ले जाता है। शिक्षा और दर्शन में घनिष्ठ संबंध है यह एक दूसरे को प्रभावित करते हैं ऐसी स्थिति में अगर हम शिक्षा जीवन उपयोगी और उपयुक्त बनाना चाहते हैं तो हमें दार्शनिक विचार धाराओं की सहायता से शिक्षा के उद्देश्य या विचारों में स्पष्टता लाना होगा।

 सभी दार्शनिक शिक्षक भी रहे हैं

प्राचीन काल से लेकर आज तक की शिक्षा के इतिहास को अगर देखें तो यह ज्ञात होता है कि लगभग सभी उच्च कोटि के दार्शनिक शिक्षक भी रहे हैं प्राचीन काल में सुकरात, प्लेटो और अरस्तू आधुनिक काल में लॉक अनु सो हरबर्ट स्पेंसर जॉन डीवी गांधी टैगोर स्वामी विवेकानंद आदि के नाम उल्लेखनीय हैं

दर्शन शिक्षा का सिद्धांत

शिक्षा के सामान्य सिद्धांतों का निर्धारण दर्शन के द्वारा ही होता है महोदय जॉन डीवी के अनुसार "दर्शन अपने सामान्य रूप में शिक्षा का सिद्धांत है।"

शिक्षा और दर्शन का जीवन से अटूट संबंध है

शिक्षा मानव के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है शिक्षा की प्रक्रिया व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक की चलती है अतः शिक्षा जीवन का अभिन्न अंग है दर्शन इसी जीवन के लक्ष्य मूल्य और आदर्श को निश्चित करता है


शिक्षा के विभिन्न अंग दर्शनशास्त्र से प्रभावित होते हैं

शिक्षा और दर्शन पर परस्पर घनिष्ठ संबंध इससे और भी स्पष्ट हो जाता है क्योंकि दर्शन शिक्षा के विभिन्न अंगों को हर प्रकार से प्रभावित करता है शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम पाठ्यपुस्तक शिक्षक शिक्षण विधियां और अनुशासन के स्वरूप तत्कालीन विचारधाराओं के अनुसार ही निर्धारित किए जाते हैं

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