Saturday 5 December 2020

शिक्षा के विभिन्न अंगों पर दर्शन का प्रभाव part 4

शिक्षा के विभिन्न अंगों पर दर्शन का प्रभाव

 शिक्षा के उद्देश्यों पर दर्शन का प्रभाव

 शिक्षा को एक स्वदेश प्रक्रिया कहां गया है क्योंकि शिक्षा का कोई ना कोई उद्देश्य जरूर होता है अन्यथा शिक्षा व्यर्थ मानी जाती है शिक्षा का उद्देश्य जीवन  के लक्ष्य पर निर्भर करता है परंतु जीवन लक्ष्य दर्शन के द्वारा निर्धारित किया जाता है दर्शन के द्वारा उद्देश्य काल तथा परिस्थितियों की विचारधारा और समाज की आवश्यकताओं के अनुसार जीवन के लक्ष्य दर्शन के द्वारा निर्धारित किए जाते हैं

उदाहरण के स्वरूप.                                                             प्राचीन काल में भारत में धर्म ही जीवन का आधार और कर्म क्षेत्र था उस समय जीवन का प्रमुख लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति था जिसकी प्राप्ति के लिए शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य आत्मशक्ति का विकास चरित्र निर्माण और आध्यात्मिक विकास माना गया है

शिक्षा के पाठ्यक्रम पर दर्शन का प्रभाव

शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम का निर्धारण किया जाता है पाठ्यक्रम पर भी दार्शनिक विचार धाराओं पर प्रभावों का पड़ना स्वाभाविक है पाठ्यक्रम का निर्माण देश या समाज की तत्कालीन विचारधाराओं के अनुकूल होता है अतः पाठ्यक्रम में उन्हीं विषयों को रखा जाता है जो उन विचारधाराओं के पोषक हूं तथा उन अवस्थाओं की पूर्ति में सहायक हो।

शिक्षण विधियों पर दर्शन का प्रभाव

शिक्षण विधियों को निर्धारित करने में भी दर्शन का बहुत प्रभाव पड़ता है इनकी सफलता उपयुक्त शिक्षण विधियों पर ही निर्भर होती है शिक्षण विधियां ही वह माध्यम हैं जिनके द्वारा छात्र और विषय सामग्री के संबंध स्थापित किए जाते हैं दर्शन का आधार ना होने के कारण शिक्षा विधि प्रभावशाली हो सकती है अतः शिक्षण विधियों का निर्माण दर्शन के आधार पर ही निर्माण किया जाना चाहिए।

 पाठ्य पुस्तकों पर दर्शन का प्रभाव

शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पुस्तकों का विशिष्ट महत्व है पुस्तकों के द्वारा ही बालकों का भावनात्मक विकास होता है और उनमें निश्चित आदर्श उत्पन्न होते हैं अतः पुस्तकों की रचना दार्शनिक विचार धाराओं को ध्यान में रखकर की जाती है दार्शनिक विचार धाराओं पर ही यह निश्चित होता है कि शिक्षा में पाठ्य पुस्तकों की आवश्यकता है कि नहीं

शिक्षक पर दर्शन  का प्रभाव

"स्पेंसर के अनुसार वास्तविक शिक्षा का संचालन दार्शनिक के द्वारा ही संभव है"

स्पष्ट है कि शिक्षक को दर्शन का अच्छा ज्ञाता होना चाहिए क्योंकि जो शिक्षक शिक्षा दर्शन को नहीं जानता वह सफलतापूर्वक शिक्षण कार्य नहीं कर सकता दर्शन के द्वारा ही शिक्षा के ज्ञान का विस्तार होता है और विचारों में परिपक्वता आती है शिक्षा के विभिन्न अंगों पर दर्शन का प्रभाव होता है और इनका संचालन शिक्षक होता है अतः निहित विचारधारा का प्रभाव शिक्षक पर पड़ना स्वाभाविक

शिक्षण संस्थानों पर दर्शन का प्रभाव

शिक्षा की औपचारिक संस्था विद्यालय तथा अनौपचारिक संस्था ग्रह और समुदाय आदि पर सभी पर दर्शन का प्रभाव होता है परिवार के सभी सदस्य अपनी शिक्षा के आधार पर अपना जीवन दर्शन निश्चित करते हैं आदर्शवादी और प्रकृति वादी विचारधारा के फल स्वरुप ही शांतिनिकेतन गुरुकुल आदि विद्यालयों की स्थापना हुई है

शैक्षिक मापन और मूल्यांकन प्रदर्शन का प्रभाव

शिक्षा में मापन और मूल्यांकन पर भी दर्शन का प्रभाव पड़ता है इस विचारधारा के प्रारंभ का श्रेय मैकाले को जाता है इनके अनुसार यदि शैक्षिक मापन को महत्वपूर्ण और प्रभावपूर्ण बनाना मां को को केवल तकनीकी ही नहीं होना चाहिए बल्कि उनके पीछे दर्शन भी होना चाहिए

अनुशासन पर दर्शन का प्रभाव

शिक्षा दर्शन का अनुशासन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है किसी देश काल में अनुशासन का स्वरूप क्या है और क्या होगा उस देश के कालवा दार्शनिक विचारधारा पर निर्भर करता है देश और काल की विचारधारा में समय-समय पर अपने ढंग से निर्धारित किया गया और उसी के अनुसार अनुशासन की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया।

निष्कर्ष 

दर्शन और शिक्षा के पारस्परिक संबंध पर विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि दर्शन और शिक्षा दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं यदि एक में परिवर्तन होता है तो दूसरे में स्वयं ही परिवर्तन हो जाता है शिक्षा के समर्थकों पर शिक्षा का प्रभाव दिखाई पड़ता है इस प्रकार दर्शन को यदि एक प्रकार का शिक्षा का मूल आधार कहा जाए तो गलत नहीं होगा।


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