Saturday 17 October 2020

मदरसा रिपोर्ट राइटिंग B.ed.

 मदरसा रिपोर्ट राइटिंग



जैसा कि हम सब जानते हैं हमारे आसपास दो तरह के मदरसे होते हैं पहले स्थान पर वह मदरसा होता है जहां पर सिर्फ उर्दू, अरबी व फारसी की तालीम दी जाती है। दूसरे स्थान पर वह मदरसे से आते हैं जहां उर्दू, अरबी व फारसी के साथ-साथ हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान व अन्य सभी विषयों की शिक्षा दी जाती है। इसके अतिरिक्त एक मदरसा और होता है जहां सिर्फ लड़कियों की शिक्षा की व्यवस्था होती है। ऐसे मदरसों को निसवाह कहा जाता है। इस्लाम धर्म में हमेशा से लड़के लड़कियों की तालीम के लिए अलग-अलग मदरसे से बनाए जाते हैं।

मदरसों का रहन सहन

जैसा कि हम सब जानते हैं मदरसों का रहन सहन काफी कठोर होता है यहां बच्चों को काफी शक्ति व अच्छी तरह से रखा जाता है। यहां बच्चों को तालिब ए इल्म को फजर की नमाज से ही जगा दिया जाता है। नमाज पढ़ने के बाद उन्हें नाश्ता मिलता है, और नाश्ते से पहले उन्हें तैयार होना पड़ता है नाश्ते के बाद कक्षाएं शुरू होती हैं जो कि दोपहर 1:00 बजे जोहर की नमाज तक चलती हैं। नमाज पढ़ने के बाद दोपहर का खाना दिया जाता है। फिर 2 घंटे आराम करने के लिए समय दिया जाता है। फिर शाम से पुनः कक्षाएं चलती हैं, जो मगरिब यानी शाम की नमाज तक चलती हैं फिर उन्हें रात का खाना दिया जाता है।
उसके बाद ईशा की नमाज जो रात में 8:00 बजे होती है पढ़ने के बाद उन्हें सबक यानी होमवर्क कराया जाता है। उसके बाद 11:00 बजे उन्हें सोने के लिए कमरे में भेज दिया जाता है। यह मदरसे की पूरे दिन की प्रक्रिया होती हैं मदरसे में छुट्टी रविवार को ना होकर शुक्रवार को होती है। मदरसों का रहन-सहन हमेशा से अन्य स्कूलों और संस्थाओं से अलग होता है।

मदरसों की शिक्षा प्रणाली

पहले समय में सिर्फ मदरसों में उर्दू, अरबी व फारसी की शिक्षा दी जाती परंतु समय वर्ष बदलते-बदलते इन की शिक्षा प्रणाली में भी सुधार हुआ और मदरसों की शिक्षा में विस्तार हुआ। पहले जहां सिर्फ हफजा और आल्मत कराया जाता था, वहां अब डॉक्टर इंजीनियर आदि बड़े पोस्ट की शिक्षा का उचित प्रावधान मौजूद है

शिक्षा व्यवस्था

 मदरसों की शिक्षा हमेशा से उच्च कोटि की रही है भले यहां अन्य जगहों की अपेक्षा अधिक मेहनत करनी पड़ती है परंतु मदरसों के बच्चों की कुशलता और self confidence उच्च स्तर का रहता है। पहले समय में मदरसों को मान्यता नहीं मिलपरं थी परन्तु मदरसों की वर्चस्व को देखते हुए सरकार ने प्रत्येक मान्यता प्राप्त मदरसों में तीन सरकारी अध्यापक जारी किये जो कि सरकारी वेतन पाते हैं, और यह अध्यापक सरकार द्वारा जारी कड़ी प्रतियोगिताओं को पार करके अपने कौशल के बल पर नियुक्त होते हैं यह अध्यापक काफी निपुण होते हैं।

प्रारंभिक शिक्षा

प्रारंभिक शिक्षा में धार्मिक शिक्षा दी जाती है उन्हें अपने धर्म  दीन के बारे में बताते हैं उन्हें नमाज रोजा धार्मिक ग्रंथों के बारे में बताते हैं।

धार्मिक ग्रंथ

इसमें बच्चे को कुरान पढ़ाया जाता है । कुरान अरबी में होती है बच्चे को अरबी भाषा में ही कुरान पढ़ने होती है और उसका माने  यानी के अर्थ भी पढ़ाया जाता है।

नमाज

फिर बच्चे को नमाज के बारे में बताया जाता है उसे बताया जाता है कि 9 वर्ष की उम्र से नमाज पढ़ना फर्ज है । और बच्चे को पांच वक्त की नमाज पढ़ने के लिए सिर्फ कहा नहीं जाता बल्कि उन्हें पढ़ने के लिए बाध्य किया जाता है । और धीरे-धीरे बच्चे की रुचि नमाज में बढ़ जाती है । मदरसे की शिक्षा बताते हैं कि कैसे नमाज की नियत उठने बैठने का तरीका आदि किया जाता है।

उच्च शिक्षा

मदरसे में हाफिजा और आल्मत की शिक्षा दी जाती है

हाफिजा

जो बच्चे हाफिजा करते हैं उन्हें पूरी कुरान पाक को ह्फ्ज करना यानी याद करना होता है और शिक्षक उन्हें शक्ति से कुरान पाक याद करवाते हैं । उन्हें रात में याद कराया जाता है और उसे सुनते भी हैं, जो हाफिज होता है उसे पूरी कुरान पाक याद होती है। और वह बहुत अच्छी तरीके से उसे पढ़ते हैं पढ़ने के लिए उन्हें उसे देखने की जरूरत नहीं पड़ती।

आल्मत

जो बच्चे आल्मत करते हैं उन्हें कुरान पाक याद नहीं करना पड़ता। उन्हें उसका अर्थ याद करना पड़ता है जो आलिम यानी मौलाना होते हैं उन्हें पूरी कुरान पाक के अल्फाजों का अर्थ पता होता है और आलिम में एक वह आलिम होते हैं, जो किरत अर्थात जो कुरान पाक रहन यानी तर्ज से पढ़ते हैं उन्हें कारी कहा जाता है।

मदरसा की कक्षाएं

मदरसे में संचालित होने वाली कक्षाएं इस प्रकार हैं मुंशी/ मौलवी, आलिम ,कामिल ,फाजिल, मोआलिल्म। 

मुंशी या मौलवी

यह हाई स्कूल के समकक्ष होता है मुंशी आर्ट साइड और मौलवी साइन साइड होता है। इसमें हिंदी और अंग्रेजी को छोड़कर सभी विषय उर्दू जुबान में होते हैं और यह बोर्ड परीक्षा होती है।

आलिम

आलिम इंटर के समान होता है। इसमें इंटर की तरह पांच विषय होते हैं इसमें अरबी नजर नजर हिंदी और अंग्रेजी आदि विषय होते हैं जो आर्ट साइड के होते हैं और फिर साइंस साइड से जो करते हैं उनमें फारसी तिब यानी विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी और अरबी विषय होते हैं।

कामिल

यह बीए के समकक्ष होता है इसमें तीन विषय होते हैं और अंतिम वर्ष में इसमें भी अंतिम वर्ष में एक विषय को छोड़ना होता है।

फाजिल

फाजिल m.a. के समान होता है इसमें भी m.a. की तरह एक विषय होता है जैसे अरबी या फारसी इनमें से एक विषय होता है

मोआलिल्म

यह पीएचडी होता है।

प्राइवेट मदरसे

यह वह मदरसे हैं जो मान्य  तो है लेकिन इसमें शिक्षकों का वेतन नहीं आता यह चंदे से चलते हैं इनमें रमजान में लोग फितरा और जकात निकालते हैं, उसे मदरसे को और गरीबों को दिया जाता है।

फितरा

एक तरह का सदका होता है जो प्रत्येक व्यक्ति का दिया जाता है

जकात

जकात वह है जो मुस्लिम लोग अपनी जायदाद का निकालते हैं। यह निकालने का तरीका है 1000 पर ढाई ₹250 यह सिर्फ रुपए का नहीं बल्कि जेवर और अनाज का भी निकाला
 जाता है ।

मान्यता प्राप्त मदरसे

पहले के मदरसों को मान्यता नहीं थी लेकिन अब कुछ ऐसे मसे हैं  जिन्हें सरकारी मान्यता है और ऐसे मदरसों में सरकारी वेतन आता है। मिड डे मील आता है, पहले के मदरसों में दो-तीन शिक्षक होते थे जिनको सरकार की तरफ से वेतन मिलता था।

आधुनिक शिक्षक आधुनिकीकरण

इसके अंतर्गत वे शिक्षक आते हैं जो अन्य स्कूलों में और मदरसों में भी होते हैं इन्हें अनुदेशक कहते हैं इन्हें राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों जगह से वेतन मिलता है।

मदरसा फंड 

मदरसे  को मदरसा बोर्ड उत्तर प्रदेश लखनऊ अल्पसंख्यक विभाग से फंड मिलता है। यहीं से मदरसा शिक्षकों का वेतन मिलता है।

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