Sunday 30 May 2021

विशिष्ट शिक्षा

 विशिष्ट शिक्षा 


विशिष्ट शिक्षा का अर्थ
विशिष्ट शिक्षा से अभिप्राय शिक्षा से है जो विशिष्ट बालकों को दी जाती है वह शिक्षा जो प्रतिभाशाली व पिछड़े बालकों को दी जाती है विशिष्ट बालकों को सामान्य बालकों से भिन्न शैक्षिक मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

विशिष्ट शिक्षा की प्रकृति तथा महत्व

विशिष्ट शिक्षा विशेष बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में सहायता करती है चाहे वह बच्चा प्रतिभाशाली हो या पिछड़ा हो विशिष्ट शिक्षा विशिष्ट बच्चों के समाज के साथ समायोजन में सहायता करती है विशिष्ट शिक्षा विशिष्ट बच्चों को पहचानने व निदान करने में सहायक होती है विशिष्ट शिक्षा की प्रकृति विकासात्मक होती है और बालक को आत्मनिर्भर बनाती है साथ ही आत्मविश्वास का संचार भी करती है विशिष्ट शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष शिक्षा सामग्री और विशेष पाठ्यक्रम विशेष प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापकों की जरूरत होती है। विशिष्ट शिक्षा के माध्यम से पिछड़े हुए बच्चों को उनके स्तर के अनुसार व्यवसायिक प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। विशिष्ट शिक्षा बालकों की क्षमताओं योग्यताओं रुचियों व अभिरुचियों  को ध्यान में रखकर दी जाती है।
विशिष्ट शिक्षा सार्वभौमिक होती है यह प्रकृति की शिक्षाएं यह शिक्षा सभी प्रकार के विशिष्ट बच्चों को दी जाती है चाहे वह किसी भी धर्म जाति लिंग रूप व आकार के अनुसार भिन्न हो। प्रत्येक नागरिक को सामान्य शिक्षा लेने का अधिकार है अतः विशिष्ट बालकों को विशिष्ट शिक्षा का अधिकार है विशिष्ट शिक्षा लोगों का विशिष्ट बालकों के प्रति दृष्टिकोण बदलती है।

विशिष्ट शिक्षा की विशेषताएं

• विशिष्ट शिक्षा की प्रकृति उपचारात्मक होती है।
• विशिष्ट शिक्षा की पहुंच दूर-दूर तक है।
• विशिष्ट शिक्षा विशिष्ट बालक को एक विश्वसनीय वातावरण देती है जो कि उसकी विशेषता को समायोजित करने में सहायता प्रदान करता है विशिष्ट शिक्षक किसी एक की विशेषता पर केंद्रित होती है अतः कहने का तात्पर्य किसी एक की आवश्यकताओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर उसे पूरा करती है।
• विशिष्ट शिक्षा शोध उन्मुख है क्योंकि विशिष्ट शिक्षा इस मान्यता पर काम करती है कि शोध नई दिशाएं देता है और नए तथ्य प्रस्तुत करता है जिससे कि विकास कार्य हेतु और भी अधिक सहायता मिलती है विशिष्ट शिक्षा विकास Van मुखी भी है इसमें विशिष्ट बालकों के विकास से संबंधित जितनी भी विषय हैं उन सभी को अपनाया जाता है।
• विशिष्ट शिक्षा विशिष्ट बालकों की शिक्षा हेतु नवीनीकरण को प्रोत्साहित करती हैं विशिष्ट शिक्षा के माध्यम से विशिष्ट बालकों को स्वस्थ व अनुकूलित वातावरण प्रदान किया जाता है।
• तकनीकी उपयुक्त विधियां शिक्षण सामग्री के मेलजोल से कक्षा गत परिस्थितियों के अंतर्गत अधिगम हेतु सुगम वातावरण तैयार किया जा सकता है विशिष्ट शिक्षा के माध्यम से शिक्षक अपने आप को कक्षा गत परिस्थितियों के लिए मानसिक व मनोवैज्ञानिक तरीके से तैयार कर लेता है।
• विशिष्ट शिक्षा के माध्यम से शिक्षक विद्यालय प्रशासन एवं विद्यालय के वातावरण में कार्य कर रहे अन्य व्यक्ति कक्षा व विद्यालय की असामान्य परिस्थितियों के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो जाते हैं।
• विशिष्ट शिक्षा माता-पिता व अभिभावकों को भी विशिष्ट बालक के विषय में जानने व उसकी शिक्षा हेतु तैयार करने में सहायता प्रदान करती है।
• विशिष्ट शिक्षा दोनों ही तरह के बालक चाहे वह अपनी विशिष्टता के क्षेत्र में प्रगति कर रहा हूं या किसी कमी की वजह से पीछे जा रहा हूं दोनों के लिए कार्य करती है।
• विशिष्ट शिक्षा अपने क्षेत्र के अंतर्गत सभी प्रकार की विशिष्टता को सम्मिलित किए हुए हैं।
• विशिष्ट शिक्षा किसी भी बालक की शिक्षा में कोई अवरोध इस कारण उत्पन्न नहीं करती कि कोई बालक धर्म जाति भाषा संस्कृति के आधार पर अलग है तो उससे विशिष्ट शिक्षा का भाग नहीं बनाया जा सकता बल्कि विशिष्ट शिक्षा तो सभी के विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के भरसक प्रयासों में सदा ही कार्यरत रहती हैं।

विशिष्ट शिक्षा के उद्देश्य
विशिष्ट बच्चों की विशेष आवश्यकताओं की पूर्व पहचान तथा निर्धारण करना विशिष्ट शिक्षा का उद्देश्य है शारीरिक दोष की दशा में इससे पहले कि वे गंभीर स्थिति को प्राप्त हो उनकी रोकथाम के लिए उपाय करना विशिष्ट शिक्षा का उद्देश्य है। विशिष्ट बच्चों को इस प्रकार शिक्षित करना ताकि वह अपने आपको समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें। शारीरिक रूप से बाधित बालकों का पुनर्वासन करना। विशिष्ट शिक्षा का उद्देश्य विशिष्ट बच्चों के प्रति माता-पिता व समाज के लोगों की सोच व दृष्टिकोण को बदलना शारीरिक रूप से बाधित बालकों की शिक्षण समस्याओं की जानकारी देना तथा सुधार हेतु सामूहिक संगठन तैयार करना यह शिक्षा विशिष्ट बच्चों को प्रेरणा प्रदान करती है ताकि वह भी अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर सकें विशिष्ट शिक्षा विशिष्ट बच्चों के माता-पिता को निपुणता तथा कार्य कुशलता के बारे में समझाना तथा बालक की समस्याओं की रोकथाम के उपाय करना है। शिक्षा की राष्ट्रीय नीति नेशनल पॉलिसी ओं एजुकेशन 1986 में स्वयं एवं जीवन यापन क्रमबद्ध का से निर्धारण करना। विशिष्ट शिक्षा के माध्यम से बालकों में यह इच्छा पैदा करना कि वे सामान्य बच्चों के सामान गतिविधियों में भाग ले सकते हैं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 1992 ने स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हुए कहा है कि उद्देश्य निम्न प्रकार होना चाहिए विशिष्ट शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग बच्चों को सामान्य वर्ग के बच्चों के साथ एकीकृत करना उनका सामान्य विकास के लिए तैयार करना उनको इस योग्य बनाना कि वे जीवन की समस्याओं का साहस व आत्मविश्वास से सामना कर सकें।

विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता

इस बात से तो सभी सहमत ही होंगे कि विशिष्ट शिक्षा ने विशिष्ट बालकों के उत्थान हेतु बहुत बड़े और महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अगर विशिष्ट शिक्षा का प्रत्येक विकसित नहीं हुआ होता तो आज भी विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों का विकास अधर में लटका हुआ रहता कितने ही विशिष्ट शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक हैं उनका योगदान अत्यधिक सराहनीय है। विशिष्ट शिक्षा के माध्यम से ही समाज के लोगों के मन में विशिष्ट आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिए सहानुभूति एवं सकारात्मक सोच विकसित हुई। विशिष्ट शिक्षा का इतिहास गवाह है कि समाज के बदलते स्वरुप के साथ यह कभी भी इतना आसान नहीं था कि विशिष्ट बालक अपनी जगह बना पाए शुरुआती दिनों में तो निर योगिता या विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों को लोगों ने जान से तक मार डाला पूर्ण विराम सिया पता चलता है कि मानवीय ताकि सारी सीमा पार हो गई थी इस समय काफी ही कहा जा सकता है इस समय में इतना बदला आ गया कि आज वर्तमान परिपेक्ष में लोग विकलांगता को अभिशाप ना मानकर मनुष्यों की अपनी ही विशेषता मानते हैं जिसके चलते बिल्कुल भी जरुरी नहीं है कि ऐसे मनुष्य को जो कि सामान मनुष्य से भिन्न है वह तरक्की नहीं कर सकते।

विशिष्ट शिक्षा का क्षेत्र

अंतरात्मा का विकास
जब किसी भी बालक में किसी प्रकार की विकलांगता होती है तो पराया वह बालक आपने हीनता का शिकार हो जाता है तथा वह सामान बालको से बिछड़ जाता है यदि हम उस की क्षमता उसकी शक्ति रुचि तथा अभिरुचि के अनुसार शिक्षा प्रदान करते हैं तो उसमें आत्मसम्मान या अंतरात्मा का विकास की भावना जागृत हो जाती है तथा वही सामान्य वालों को की तरह राष्ट्र हित में में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं अतः यह आवश्यक है कि विशिष्ट बालक को के लिए विशिष्ट शिक्षा का प्रबंध किया जाए जिसे अंतरात्मा का विकास हो सके ।
एक समान शैक्षिक अवसर

यदि हम सामान्य बालकों की तरह विशिष्ट बालकों को भी समान शिक्षा के अवसर प्रदान करेंगे तो उनमें भी कुछ कर गुजरने की भावना का विकास होगा तथा वह भी समाज तथा देश के लिए कुछ कर गुजर ना चाहेंगे की इसलिए यह जरूरी है कि विशिष्ट बालकों को भी सामान शैक्षिक अवसर प्रदान किए जाएं।
जीवन में समानता
विशिष्ट बालकों को अपने आप को घर विद्यालय तथा समाज में स्थापित करने के लिए कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है अगर उनकी क्षमता योग्यता और अभिरुचि का पूर्ण विकास नहीं होता है तो वे और भी पिछड़ जाते हैं सामान्य बालकों के समकक्ष लाने के लिए उनको शिक्षा ग्रहण करने के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने चाहिए ताकि वह भी अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सके और देश की उन्नति में अपना योगदान दे सकें।
कल्याणकारी राज्य
भारत एक लोकतांत्रिक तथा विकासशील देश है सभी देश कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना चाहते हैं। कल्याणकारी राज्य में सभी नागरिक सुख समृद्धि और आनंद का जीवन व्यतीत करते हैं अतः यह आवश्यक हो जाता है कि विशिष्ट बालक भी इस प्रकार का जीवन यापन कर सकें। इसके लिए यह बहुत जरूरी है कि उनके लिए कल्याणकारी योजनाएं चलाई जाएं उनको शिक्षा ग्रहण करने के अधिक अवसर प्रदान किए जाएं ताकि वे भी अच्छा स्वास्थ्य व सुखी जीवन व्यतीत कर सकें हमें राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनको सुविधा प्रदान करनी चाहिए ताकि कल्याणकारी राज्य का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।

विशिष्ट शिक्षा से जुड़े हुए विशेषज्ञों एवं शिक्षकों के पालन करने हेतु कुछ आवश्यक बिन्दु

विशिष्ट शिक्षा यह विशेषता से संबंध रखने वाले व्यक्तियों के लिए आवश्यक है कि वह विशिष्ट बैंकों के विकास की क्षमताओं को विकसित करने हेतु विद्यालय व समुदाय के स्तर पर उनकी सहभागिता को प्रोत्साहित करें। विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ विशिष्ट शिक्षकों व अन्य विशिष्ट शिक्षा से जुड़े व्यक्तियों के लिए यह बहुत आवश्यक है कि वह अपने व्यवसाय के प्रति समर्पित रहे तथा विशिष्ट व्यक्तियों के संदर्भ में कोई भी निर्णय लेने से पूर्व किसी भी प्रकार का वर्गीकरण करने से पूर्व निष्पक्षता दिखाएं। विशिष्ट शिक्षा से संबंध रखने वाले व्यक्तियों के लिए यह आवश्यक है कि वह विशिष्ट बालकों के विकास को उच्चतम स्तर तक ले जाएं वह उन्हें उनकी संस्कृति भाषा जाति से जुड़े रखते हुए उनके अधिगम की बंधी हुई सीमाओं से उन्हें ऊपर ले जाएं।
किसी भी विधि व तकनीक को प्रयोग में लाने से पहले या आवश्यक बनता है कि अन्य शोध निष्कर्षों तथा अन्य प्रमाण व व्यवसाई ज्ञान की सहायता लें यह आवश्यक है कि विशिष्ट शिक्षा से संबंध रखने वाले प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्तियों को अपने ही व्यवसाय क्षेत्र से जुड़े अन्य विशेषज्ञों या संबंध रखने वाले व्यक्तियों के साथ अच्छा तालमेल बैठा लेना चाहिए ताकि किसी भी कार्य या निर्णय को समझदारी से लिया जा सके विशेषज्ञ एवं विशिष्टता से संबंधित व्यक्तियों के लिए भी या अनिवार्य है कि विशिष्ट बालकों के परिवारों से संपर्क बनाए वह विशिष्ट बालकों के क्षेत्र में कोई भी निर्णय लेने से पहले उनके परिवारी जनों व शुभचिंतकों से भी सुझाव प्राप्त करें।
व्यवसायिक से संबंधित व्यक्तियों के साथ मिलकर कार्य करें व कड़ाई से व्यवसाय से जुड़े सिद्धांतों का पालन करें विशिष्ट शिक्षा से जुड़े क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए सुधार करने के लिए व्यवसाई को के लिए आवश्यक है कि इस क्षेत्र से संबंधित घटनाओं व संघों में अपने आप को प्रत्यक्ष रूप से शामिल करें वह इस क्षेत्र से जुड़े कौशल व ज्ञान का प्रचार प्रसार करें।

विशिष्ट शिक्षा एवं समावेशी शिक्षा में अंतर
विशिष्ट शिक्षा
• विशिष्ट शिक्षा विशिष्ट व सामान्य बालकों को अलग-अलग शिक्षा प्रदान करती है।
• विशिष्ट शिक्षा भेदभाव के सिद्धांत पर आधारित है।
• विशिष्ट शिक्षा अधिक महंगी व खर्चीली शिक्षा है।
• विशिष्ट शिक्षा शिक्षा प्रदान करने का एक पुराना विचार है।
• विशिष्ट शिक्षा कुछ-कुछ चिकित्सा का रूप रखती है।

समावेशी शिक्षा
• समावेशी शिक्षा प्रतिभाशाली व सामान्य बालकों को एक साथ पूर्ण समय में शिक्षा प्रदान करती हैं।
• समावेशी शिक्षा समानता के आधार पर है।
• समावेशी शिक्षा नए एवं पुराने विचारों दोनों के रूप में हैं।
• समावेशी शिक्षा कम खर्चीली होती है।
•  समावेशी शिक्षा वैज्ञानिक आधार पर है।

Labels: ,

Friday 28 May 2021

मिड डे मील योजना (मध्यान्ह भोजन योजना)

 मिड डे मील योजना (मध्यान्ह भोजन योजना)

भारत में प्राथमिक शिक्षा की उत्तम व्यवस्था हेतु भारत के स्वतंत्रता उपरांत ही बहुत सी नीतियां बनाई गई क्योंकि हमारा उद्देश्य निश्चित आयु वर्ग के सभी बालकों के लिए प्राथमिक शिक्षा निशुल्क व अनिवार्य के लक्ष्य को पाना था। प्राथमिक शिक्षा के प्रसार तथा उन्नयन के लिए सुझाव देने के संबंध में 1975 में सरकार ने अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षा परिषद का गठन किया इस परिषद ने प्राथमिक शिक्षा के प्रसार व उनके संबंध में ठोस सुझाव दिए जिससे प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में तेजी आई 1966 में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग ने अपना प्रतिवेदन सरकार के समक्ष पेश किया इस आयोग ने बिना किसी भेदभाव के हर धर्म जाति वर्ग के छात्रों के लिए शैक्षिक अवसर की समानता पर बल दिया राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 घोषित हुई इसमें भी प्राथमिक शिक्षा के निशुल्क व अनिवार्य करने के संबंध में ठोस नीतियां दी गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 नई शिक्षा नीति में शिक्षा का सार्वभौमीकरण करना प्रमुख लक्ष्य निर्धारित किया गया ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना का प्रारंभ किया गया 1990 में विश्व कॉन्फ्रेंस में सबके लिए शिक्षा की घोषणा की गई जिसमें सभी देशों में प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में तेजी आई जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया गया 1994 में 15 अगस्त 1995 को सरकार ने छात्रों को स्कूलों की तरफ आकर्षित करने के लिए मिड डे मील योजना शुरू की जिसे पौष्टिक आहार सहायता का राष्ट्रीय कार्यक्रम भी कहा जाता है।
इस कार्यक्रम में 100 ग्राम गेहूं चावल प्रति छात्र प्रति स्कूल दिवस के अनुरूप कैलोरी युक्त पूरा पके हुए भोजन का प्रावधान रखा गया सितंबर 2004 में कुछ विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु इस कार्यक्रम में संशोधन किया गया जून 2006 में इस योजना में पुनः संशोधन किया गया इस योजना के मुख्य बिंदु निम्न प्रकार हैं
• इस योजना के अनुसार कक्षा 1 से लेकर 5 तक के सभी बच्चों के लिए मध्यान पोषाहार उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है
• इस भोजन की पौष्टिकता 300 कैलोरी और प्रोटीन की क्षमता 8 से 12 ग्राम होनी चाहिए स्कूल प्रत्येक बच्चे को 100 ग्राम गेहूं या चावल के हिसाब से खाद्यान्न की निशुल्क आपूर्ति की जाती है यह पूर्ति पास के एफसीआई गोदाम से की जाती है
• इस योजना से प्राथमिक विद्यालय के 5 पॉइंट 5000000 बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।
• सरकार द्वारा घोषित सूखा प्रभावित राज्यों में गर्मियों की छुट्टियों में पका हुआ भोजन उपलब्ध कराने में आर्थिक सहायता दी जाती है।
• भोजन पकाने की व्यवस्था के लिए ₹6000 प्रति विद्यालय को आर्थिक सहायता भी दी जा रही है इसके अतिरिक्त खाद्यान्न को गोदाम से स्कूल तक लाने के लिए भी आर्थिक सहायता दी जा रही है।
• इस कार्यक्रम के अंतर्गत आंध्र प्रदेश उड़ीसा तमिलनाडु छत्तीसगढ़ झारखंड तथा पांडिचेरी में अनाज के साथ फल अंडे इत्यादि भी दिए जाते हैं कर्नाटक गुजरात छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बच्चों को दवाइयां भी वितरित की जाती हैं।
• यह योजना विकेंद्रित रूप से ग्राम पंचायतों ग्रामीण शिक्षा समितियों तथा अभिभावक शिक्षक संघ आदि स्थानीय एजेंसियों की सहभागिता से लागू किया जा रहा है इस कार्यक्रम को सुव्यवस्थित रूप से चलाने के लिए केंद्र राज्य जनपद ब्लॉक तथा पंचायत स्तर पर व्यवस्था की गई है।
मिड डे मील योजना की आवश्यकता एवं महत्व

शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास अर्थात शारीरिक एवं मानसिक विकास करना है जिसकी पूर्ति के लिए विद्यालय में मध्यान भोजन व्यवस्था को एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है मध्यान भोजन का तात्पर्य दोपहर के भोजन से है इसका प्रचलन विशिष्ट रूप से बड़े-बड़े नगरों में आसानी से देखा जा सकता है वहां बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था दोपहर में ना करके मध्यान्ह अर्थात 10 10:30 की जाती है जिससे बालक अपनी खोई हुई शक्ति की पूर्ति तथा थकान दूर करते हैं अतः विद्यालय में मध्यान भोजन की आवश्यकता एवं महत्व को निम्न बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

• पौष्टिक एवं संतुलित भोजन की प्राप्ति
• अस्वास्थ्य था एवं बीमारियों से बचाना।
• भोजन संबंधी उपयुक्त आदतों का निर्माण करना।
• समय धन एवं शक्ति की बचत करना।
• सामाजिक जीवन के लिए शिक्षा।

मिड डे मील योजना के उद्देश्य
• प्राथमिक स्कूलों में छात्रों की संख्या में वृद्धि करना।
• सरकारी सहायता प्राप्त एवं स्थानीय निकाय विद्यालयों और ईजीएस तथा एआई केंद्रों में कक्षा एक से पांच तक बालकों के पोषण आहार की स्थिति में सुधार करना तथा कुपोषण से बचाना।
• प्राथमिक स्तर पर अबे को रोककर बालकों को प्राथमिक स्कूलों में रोके रखना।
• निर्धन एवं वंचित वर्गों के बालकों को कक्षा में नियमित उपस्थिति कक्षा की गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने तथा विद्यालय में टिके रहने के लिए प्रेरित करना।
• छात्रों की नियमित उपस्थिति में वृद्धि करना।
• छात्रों को पौष्टिक भोजन के द्वारा स्वास्थ्य लाभ देना।
• बिना किसी भेदभाव के एक साथ भोजन करने से भ्रातृत्व का भाव उत्पन्न करना जाति भेद खत्म करना ।

मिड डे मील योजना केंद्र सरकार के द्वारा शुरू की गई इस योजना में केंद्र और राज्य सरकारें 75 :25 के अनुपात में वह करती हैं सरकार भोजन के लिए खाद्य सामग्री गेहूं चावल व अन्य पदार्थ उपलब्ध कराती है भोजन कराने के लिए 25 बालों को पर एक रसोईया तथा एक सहायक 25 से अधिक बालकों पर दो रसोईया तथा दो सहायकों की व्यवस्था है जो भोजन पकाने का

मिड डे मील योजना का क्षेत्र
प्रारंभ में यह योजना केवल सरकारी प्राथमिक स्कूलों में लागू की गई। 1997- 98 तक इसे देश के सभी प्रांतों के स्कूलों में लागू किया जा चुका था। 2002 में इस योजना में मुस्लिमों द्वारा चलाए जा रहे मदरसों को भी शामिल कर लिया गया। 2007 में उच्च प्राथमिक स्कूलों को भी इस योजना का लाभ मिलना शुरू हो गया। वर्तमान में कुछ सरकारी आर्थिक सहायता मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों को इस योजना में भी शामिल कर लिया गया है 2014-15 में यह योजना लगभग 11.50 लाख प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में चल रही थी इसे 10.50 करोड़ बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।

मिड डे मील की आवश्यकता
विश्व खाद्य कार्यक्रम डब्ल्यूएफपी वर्तमान में कुपोषण और खाद्य सुरक्षा के स्तर को सुधारने के लिए खाद्य आधारित सुरक्षा तंत्र को सशक्त करने में सहयोग करता है भारत में इसके सहयोग में मिड डे मील कार्यक्रम चलाया जिसकी आवश्यकता को निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं।
फोर्टिफिकेशन
फोर्टिफिकेशन एक प्रयास और प्रशिक्षण प्रक्रिया है जिसके माध्यम से खाद्य पदार्थों में सूक्ष्म पोषक तत्व को जोड़ा जाता है। चावल और गेहूं की फसल फोटोफ़ाई  लोहे और विटामिन ए के साथ सफलतापूर्वक सफल हुआ है पकाया हुआ भोजन को भी प्रीमिक्स सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ मजबूत किया जा सकता है। एक उचित लागत मूल्य पर सूक्ष्म पोषक तत्वों की स्थिति में सुधार किया जा सकता है। डब्ल्यू एसपी उड़ीसा की सरकार के साथ मिलकर एक जिले में एमडीएम चावल में लौह तत्व का चालन किया 1 साल के भीतर एनीमिया के मामलों में 5% की गिरावट आ गई
एकीकृत सुरक्षित तथा स्वच्छ आदतें
एमडीएम में सुरक्षित और स्वच्छ आदतों को एक ही कृत करना सुनिश्चित करना आवश्यक है। यह खाद्य आपूर्ति श्रंखला के द्वारा तैयारी एवं उपभोग के समय निर्धारित किया जा सकता है और भंडारण सुविधाओं में स्वच्छता होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त हाथ धोने के तथा वस्तुओं को साफ करने के लिए सतत जलापूर्ति एवं के साथ उपयुक्त किट रसोइए के लिए दस्ताने और कैप्स सुरक्षित खाद्य अपशिष्ट निपटाने की आवश्यकता। प्रत्येक विद्यालय में शौचालय बनाने के लिए सरकार की ओर से पहल की आवश्यकता है।
विद्यालय प्रबंधन में सुधार
विद्यालय प्रबंधन में रसोई कर्मचारी तथा छात्र स्वयं योजना के अनावश्यक सहयोग के लिए प्रबंधन करता है। रसोई में कार्य करने वाले कर्मचारियों के स्वास्थ्य की नियमित जांच होना आवश्यक है तथा उन्हें अच्छी स्वास्थ्य आदतों को अपनाना चाहिए जैसे खाना बनाने से पहले हाथ धोना आदि। स्वच्छ भारत स्वच्छ भारत स्वच्छ खाना पकाना तथा स्वच्छ रसोई तीन महत्वपूर्ण संदेश है जो विद्यालय प्रबंधन में सम्मिलित होने चाहिए।
पोषण को सफलतापूर्वक सुधारने के लिए खाद्य स्वास्थ्य स्वच्छ पेयजल के साथ किया जा सकता है। एमडीएम भारत के पोषण संबंधी आवश्यकताओं के लिए सहयोग करते हैं। लेकिन इसमें स्वच्छता और पोषण संबंधी मूल्य के बारे में कुछ खामियां हैं जिनको दूर करने की आवश्यकता है।
मिड डे मील योजना की कार्यप्रणाली
इस योजना को राज्य सरकार की सर्व शिक्षा अभियान समिति के द्वारा संचालित कराया जाता है यह समितियां अपने अपने क्षेत्र में इस योजना का संचालन तथा निगरानी करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों में ही भोजन तैयार कराया जाता है। शहरी क्षेत्रों में ठेकेदारों के द्वारा भोजन उपलब्ध कराया जाता है। सरकारी दावे के अनुसार कक्षा एक से पांच तक प्रत्येक बच्चे को प्रतिदिन 100 ग्राम अनाज दाल सब्जी दिया जा रहा है और कक्षा 6 से 8 तक प्रत्येक छात्र को प्रतिदिन 150 ग्राम अनाज दाल सब्जी आदित्य जा रहा है।
शैक्षिक परिणामों पर मध्यान भोजन का प्रभाव
• भारत सरकार ने 1995 में राष्ट्रीय स्कूल भोजन कार्यक्रम मिड डे मील स्कीम का शुभारंभ किया। इसका उद्देश्य सरकारी एवं सरकारी अनुदानित विद्यालयों में कक्षा 1 से 8 के बच्चों को पोषण में सुधार करना है पूर्ण ब्रह्म विद्यालय उपस्थिति और स्कूल में बच्चों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए भी डिजाइन किया गया है एमडीएम का उद्देश्य प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों को सारे 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध कराना है इसके अतिरिक्त पर्याप्त मात्रा में लो और फोलिक एसिड जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व को भी प्रदान करना है पूर्व किसी भी कार्यक्रम का प्रभाव का आकलन करने के लिए एक पूर्व और पोस्ट आदर्श डिजाइन होता है जो नियंत्रण समूह के साथ हस्तक्षेप करते हैं। क्योंकि इस कार्यक्रम में आधारभूत जानकारी उपलब्ध नहीं थी इसलिए 30 स्कूलों को एक सेट नियंत्रण समूह के रूप में एमडीएम कार्यक्रम के बिना तोर अन्य सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि के लिए प्रयोग किया गया दोनों स्कूलों के सेट उसी भौगोलिक क्षेत्र के थे जो अनिवार्य रूप से सामान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के थे प्रत्येक विद्यालय में nadani परीक्षा और शैक्षिक प्रदर्शन के लिए 5 लड़के तथा 5 लड़कियों का चयन प्रत्येक विद्यालय से किया गया फोन नंबर राम यदि किसी कक्षा में लड़कों या लड़कियों की संख्या 10 से कम थी तो सभी उपस्थित छात्रों को चयन में सम्मिलित किया गया इन चयनित विद्यालयों में निम्नलिखित का आकलन किया गया ।
प्रत्येक कक्षा 1 से 5 के 10 छात्र जिसमें लड़का और एक लड़की अनिवार्य को एमडीएम के अंतर्गत अब लोकगीत किया गया जब वह सप्लीमेंट का उपभोग कर रहे थे। भोजन की जितनी मात्रा प्राप्त हुई उसे परोसने के समय मापा गया इसके अतिरिक्त प्रतिदिन जिस अनुपात में राशन निकाला गया किस प्रकार भोजन बनाया गया तथा उसके भंडारण की बारीकी से अवलोकन किया गया प्रति छात्र पोषक भोजन से प्राप्त उर्जा एवं प्रोटीन की गणना की गई। पोषण संबंधी स्थिति का मूल्यांकन एमडीएम स्कूल में 1361 बच्चों और गैर एमडीएम स्कूलों में 1335 बच्चों पर किया गया था। यह बच्चे थे जिन्हें मानव निर्मित एवं नैदानिक परीक्षा के लिए चयनित किया गया था इस प्रकार मिड डे मील कार्यक्रम के प्रभावशीलता को निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं।
• नामांकन स्थिति छात्रों की कुल संख्या जो 6 वर्ष से 11 वर्ष थी स्कूल नामांकन के योग्य थे वह कुल जनसंख्या की 14% थे पूर्णब्रह्म एमडीएम कार्यक्रम के साथ स्कूलों में दाखिले की संख्या 68% तक हो गई थी
• उपस्थिति मिड डे मील के प्रभाव से छात्रों की उपस्थिति में बढ़ोतरी हो गई थी।
• प्रतिधारण अंदर एमडीएम स्कूलों में कक्षा एक में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या 80 पॉइंट 2 प्रतिशत किया जो गैर एमडीएम स्कूलों से बेहतर थी इन छात्रों को अपने 4 वर्षों के लिए दाखिला एवं पदोन्नति दी गई थी पूर्व राम मिड डे मील कार्यक्रम में लड़कियों की प्रति धारणा को कम किया मिटे मिलने प्रतिधारण दर को उचित तरीके से कम किया।
• ड्रॉप्ड आउट मिड डे मील में विद्यालय में छात्रों की संख्या को बढ़ाने में सहयोग किया जो छात्र बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते थे उनके लिए यह कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र है जिससे वे विद्यालय में रुकने के लिए बाध्य हो गए
• शैक्षिक प्रदर्शन पूर्वर्ती वार्षिक परीक्षा में प्रत्येक बच्चे द्वारा प्राप्त अंक स्कूल के रिकॉर्ड से एकत्र किए गए थे जो सामान्य तौर पर विश्लेषण के उद्देश्य के लिए स्कूल में अपनाए गए ग्रेड के अनुसार वितरित किए गए थे मिड डे मील स्कूल में ग्रेड ए वाले छात्रों का अनुपात बढ़ गया इस प्रकार मिड डे मील के प्रभाव से छात्रों की स्कूल गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी देखी जा रही है कुल दाखिला दर का प्रोत्साहन मिला है शैक्षिक सुविधाओं के साथ-साथ अच्छे स्वास्थ्य के अवसर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं विद्यालय में बालिकाओं की संख्या में वृद्धि तथा छात्रों के पोषण स्तर को बढ़ाने के लिए मिड डे मील उत्तरदाई है। मिड डे मील में उपलब्ध पोषक भोजन की गुणवत्ता में भी सुधार किया जा रहा है प्रत्येक राज्य के मिड डे मील मानक वहां की आवश्यकता के अनुसार ही निर्धारित किए गए हैं

मिड डे मील योजना के गुण एवं दोष

गुण
मिड डे मील योजना के मुख्य गुण इस प्रकार हैं
• इस योजना को लागू करने के बाद से प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई
• पिछड़ी जाति अनुसूचित जाति जनजाति व मुस्लिम छात्रों का नामांकन भरा है।
•  इस योजना के बाद से ही बीच में स्कूल छोड़ जाने वाले छात्रों की संख्या में कमी आई अर्थात अपव्यय की समस्या का समाधान हुआ।
• इस योजना के कारण गरीब परिवारों के बच्चे जिन्हें पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता था उन्हें पौष्टिक आहार मिलने लगा जिससे उनका पोषण वह।
•  छात्रों के एक साथ बैठकर खाने से जातिगत भेदभाव में कमी आई है।
इस योजना को शिक्षा सत्र 2014 15 तक देश के 11.50 लाख प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में लागू किया जा चुका है और इससे 10.50 करोड़ बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।

दोष
• जो धनराशि सरकार से इस योजना के लिए स्कूलों को प्रदान की जा रही है उसका सही प्रयोग नहीं किया जा रहा है।
• आए दिन समाचार पत्रों में खबरें प्रकाशित होती रहती है कि मिड-डे-मील खाने में छात्रों की तबीयत खराब हो गई इसका प्रमुख कारण है मिड डे मील बनाते समय साफ-सफाई का ठीक से ध्यान रखना
•  इस योजना के प्रति स्कूल गंभीर नहीं है जिसे या योजना ठीक प्रकार से चल नहीं पा रही है।
• कोई भी योजना छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं देती है
• इस योजना के प्रति गंभीरता ना होने से यह बालकों के लिए लाभदाई से ज्यादा कष्ट दाई सिद्ध हो रही
इस योजना में अच्छाई तो है परंतु साथ में कुछ बुराई भी है इस योजना को लागू हुए बहुत समय हो गया है परंतु इससे जो लोग लाभ होना चाहिए था वह लाभ नहीं हो रहे हैं यदि इस योजना से जुड़े व्यक्ति अपना कार्य निष्ठा व ईमानदारी से करें तो इस योजना से बहुत लाभ हो सकता है अपव्यय की समस्या का समाधान तथा सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है इस योजना में हो रही लापरवाही की जांच कर दोषी व्यक्तियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए तब ही यह योजना अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकेगी।

Labels: ,

Thursday 15 April 2021

What is BALVADI and ANGANAWADI

 What is BALVADI and ANGANAWADI 


BALVADI
balwadi is an Indian preschool run in rural areas for economically weaker section of the society either by government aur NGOs balwari can be defined as "a pre primary school ran economically but scientifically and using as many educational ideas as possible prepared from locally available material"

This was developed by tarabai modak and and the first balwadi was started in BURDI a coastal village in the district of Thane in Maharashtra by Nutan Bal Shikshan Sangh in 1945.
Modak was Pioneer in putting in effort for providing non formal education at preschool level in India.

Modak started to type of balwadi namely
1 Central balwadi and
2 Angan balwadi
The central balwadi function during regular School hour and are centrally located whereas anganbadi are located in the the neighborhood of the children targeted and have how was at their convenience.

SPECIAL FEATURES OF BALWADI
• The village community manage the centre and provides a room and land for it.
• Free e midday meal are not provided in the bulberries instead parents are requested to send Tiffin lunch with their children which is then shared at the meal time this is in keeping with our policy of minimum Mani imports and sports the concept of self sufficiency in the village. Communities are motivated to grow cereals vegetables and fruits locally and support system is provided in the village The Sharing of food amongst the children helps to break down caste barrier among the children.
• The teacher usually a girl or a young woman of the village or of a nearby village in appointed by the village community.
• Environmental education activities are are given a a prominent place in the balwadi programme with the aim of helping the child related to his or her immediate environment.
• The balwadi teacher are mostly young and not highly educated often  a teacher training course by participating in the balwadi program the gain confidence and develop with environmental awareness and acknowledgeable adults. They are motivated to to do socially useful work and de yaar instrumental in the the formation of women's group.
• In general the balwadi is a name of bringing about positive changes in Outlook and behaviour of all village residents.
Early childhood care and education is the foundation on which a child's future is built free school balwadi have been set up in communities and provide and atmosphere of joyful learning for 4 to 6 year olds and socialize the role of education in communities. The first six year are crucial for children because that is when their young mind develop and the acquire the the skill will see them through life. It is therefore essential that every child is provided with the opportunity of early stimulation and Rut in a preschool a child find the stimulation of new things new ideas and new concept something many disadvantage and deprived children in India seldom find at home

ANGANAWADI

The word anganbadi means COURTYARD SHELTER. They were started by the Indian government in 1975 as part of the the integrated CHILD DEVELOPMENT SERVICE PROGRAM to combat child hunger and malnutrition.
Atypical anganbadi Centre also provide basic Health Care in Indian villages it is a part of the the Indian public Healthcare system. Basic Health Care activities include contraceptive counselling and supply nutrition education and supplementation as well as preschool activities the centres are also used as  deposit for oral rehydration salts basic medicine and contraceptives.

MEANING AND ORIGIN
Anganbadi is drived for the Hindi word Angan which refers to the the the courtyard of the house. In rural areas Angan of the house is is seen as the heart of the house the significance that this part of the house enjoys is how the worker who works in an Angan and visits other Angan Tu perform Indispensiable duty of helping with health care issue among their things this is how they are known as the anganbadi workers they are after all the most important link between the rural poor and good health care.

WORK OF ANGANWADI
The basic work of the Anganwadi workers is extremely important and needs to be carried out in the most efficient manner.
The need to provide care of newborn baby as well as ansure that all children below the age of 6 are immunized against tetanus. In addition to this the most also provide post natal care to nursing mothers.
Since day primary focus on polar and malnourished groups it becomes necessary to to provide supplementary nutrition to both children below the age of 6 as well as nursing and pregnant women.
The worker need to ensure that regular health and medical checkups of women and children are done they also see to it that they have easy access to these check UPS. The Anganwadi workers need to work towards providing preschool education to children who are between 3 to 5 year of age.

RESPONSIBILITIES OF ANGANWADI WORKERS
The responsibilities of the Anganwadi workers they are-
• Showing community support and active participation in executing the program.
• To conduct regular and quick survey of all the families.
• Organise preschool activities
• Provide health and nutritional education to the the families specially pregnant women
• Motivating families to adopt family planning measures.
• Educating parents about child growth and development
• Assist in the implementation and Exhibition of Kishori Shakti Yojana Tu to educate teenage girls and parents by organising Social awareness program excetra.
• Identifying disabilities in children.

THE ANGANBADI SYSTEM
• Anganwadi system is mainly managed by the anganbadi workers she is a health worker chosen from the the community and given four months training in health nutrition and child care.
• She is in charge of an anganbadi which covers a population of 1000 person. About 20 -25 anganbadi workers are supervised by a supervisor called mukhya sevika. 4 mukhya seVikas are ahead by a CHILD DEVELOPMENT PROJECT OFFICER CDPO

• There are estimated 1.053 million Anganwadi centre employing 1.8 million mostly female workers and helpers across the country.
• The anganbadi worker provides other is Service to poor families in need of immunization health food clean water clean toilet and a learning environment for infants toddlers and please caller's they also provide similar service for expectant and nursing mother
•  anganbadi are India's primary tool against the The scourges of child malnourishment infant mortality and curbing preventable diseases such as polio.
• In many ways the Anganwadi worker in better equipped then the professional doctor in in reaching out the rural population. Primarily since the the work lives with the people she is in a better position to identify the cause of various health problem and hence counter them.
The anganbadi worker are well aware of the ways of the people are comfortable with the the language know the rural folk personally extra which make it easy for them to figure out the problems being faced by the people and ensure that this problem are solved
Anganbadi staff by officers and their helpers who are typically women from poor families. The workers do not have permanent job with comprehensive retirement benefits like other government staff they all Indian anganbadi workers Federation and other anganbadi workers are are protesting and public debates are going on there are are periodic reports of of corruption and crimes against women in some anganbadi centre
Since quite a long time discussion has been going on regarding the salaries of the workers and the helpers finally in this budget speech the the then Finance minister Pranab Mukherjee for the financial year 2011-12 increased the salary of the Anganwadi workers to rupees 5000 per month and help us to 1500 per month.

Labels:

Thursday 18 March 2021

समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं महत्व

 समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं महत्व

Unit 1
lessons 1

इस अध्याय से आने वाले प्रश्न इस प्रकार हैं

दीर्घ प्रश्न
1. समावेशी शिक्षा की अवधारणा बताइए तथा इसकी विशेषताओं का विस्तृत वर्णन करते हुए इसकी आवश्यकता एवं महत्व को बताइए।
2.
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. समावेशी शिक्षा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
2. समावेशी शिक्षा की किन्हीं दो परिभाषा को स्पष्ट कीजिए
3. समावेशी शिक्षा के सिद्धांत को बताइए
4. समावेशी शिक्षा के कार्य क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए

उत्तर -
समावेशी शिक्षा की अवधारणा

समावेशी शिक्षा वह शिक्षा है जिसमें सामान्य विद्यालय में बाधित व सामान्य बालकों को एक साथ शिक्षा प्रदान की जाती है.
  शिक्षा शास्त्रियों व मनोवैज्ञानिकों में इस बात को लेकर काफी मतभेद रहे हैं कि बालकों को विशिष्ट शिक्षा विशिष्ट विद्यालयों में दी जाए या फिर इनको भी सामान विद्यालयों में ही बढ़ाया जाए अतः यह निर्णय लिया गया कि जहां तक संभव हो इस प्रकार के बालकों को सामान्य विद्यालयों में ही पढ़ाया जाए ताकि उनमें हीन भावना ना आए और मुख्यधारा से अलग ना हो।
विद्यालयों में विभिन्न प्रकार के बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं जो बच्चा शारीरिक रूप से विकलांग होता है वह एकदम से पहचाना जाता है लेकिन जो बालक मानसिक रूप से बाधित होते हैं उनकी पहचान करना काफी मुश्किल कार्य है जो बालक शारीरिक या मानसिक रूप से अपंग होते हैं वह सामान्य बच्चों की अपेक्षा कुछ कम सीख पाते हैं विशिष्ट शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार के बच्चों में छिपी हुई योग्यता को उभारना है ताकि उसकी योग्यता का प्रयोग देश के हित में किया जा सके।
समावेशी शिक्षा का प्रत्यय अभी नया नया है तथा सामान्य लोगों ने इसका महत्व समझना शुरू कर दिया है स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक प्रभावी रूप से काम कर रहे हैं शिक्षा शास्त्री मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि बच्चों को विशेष विद्यालयों की अपेक्षा सामान्य विद्यालयों में ही शिक्षा देनी चाहिए अमेरिका में 1975 ईस्वी में अमेरिका कांग्रेस ने प्रत्येक अक्षम बच्चे को शिक्षा का एक कानून पास किया था इस कानून का मुख्य उद्देश्य अक्षम बालकों को देश की मुख्यधारा से जोड़ना था मुख्यधारा से या अभिप्राय है कि शारीरिक तथा मानसिक दोष वाले बालक सामान्य बालकों के साथ पड़ेंगे तथा उनको विशेष प्रकार की सहायता दी जाएगी
समावेशी शिक्षा के अंतर्गत सभी प्रकार के असमर्थ बालकों को सामान्य कक्षाओं में नहीं पढ़ाया जा सकता इसका मुख्य उद्देश्य है कि असमर्थ बालकों को सभी सामान्य कक्षा में डाला जाए जब वहां का वातावरण उनकी आवश्यकताओं के अनुकूल हों और वे अपने आपको दूसरे बच्चों से अलग महसूस ना करें।

समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा
समावेशित शिक्षा शारीरिक और मानसिक रूप से क्षतिग्रस्त बालकों को सामान्य बालकों के साथ सामान्य कक्षा में शिक्षा ग्रहण करने पर जोर देती है और विशिष्ट बालकों की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुमोदन करती है यदि किसी विशिष्ट बालक को विशेष शिक्षा और सहायता की आवश्यकता होती है तो उसे विशिष्ट या अपंग न कहकर उसकी आवश्यकता अनुसार शिक्षा तथा मदद दी जाती है इस प्रकार समावेशित शिक्षा में मुख्यधारा तथा एकीकरण का सहारा लेकर सभी बालकों को एक साथ शिक्षित करने का उद्देश्य पर बल दिया जाता है।

समावेशी शिक्षा की परिभाषा

स्टेनबैक एवं स्टेनबैक- का विचार है कि समावेशी विद्यालय अथवा पर्यावरण से अभिप्राय ऐसे स्थान से है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपने को सदस्य मानता है जिसको अपना समझता है जो अपने साथियों और विद्यालय कुटुंब के प्रत्येक सदस्य की सहायता करता है और अपनी शिक्षा प्राप्ति संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उनसे सहायता प्राप्त करता है

आडवाणी और चड्ढा का विचार है कि समावेशी शिक्षा का उद्देश्य एक सहायक तथा अनुकूल पर्यावरण की रचना करना है ताकि सभी को पूर्ण प्रतिभा गीता के लिए समान अवसर प्राप्त हो सके और इस तरह से विशेष आवश्यकता वाले बालक शिक्षा की मुख्यधारा के क्षेत्र में सम्मिलित हो सके

समावेशी शिक्षा की विशेषताएं
1. सभी के लिए विद्यालय में सभी हेतु शिक्षा समावेशी शिक्षा के अंतर्गत बाधित शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों एवं सामान्य बच्चों हेतु सभी स्कूलों में सभी के लिए शिक्षा का प्रावधान किया गया है।
2.  विशिष्टता की पहचान तथा चिंता करना समावेशी शिक्षा पद्धति बच्चों की शारीरिक बौद्धिक मानसिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक आदि अनेक विभिन्न नेताओं की पहचान करती है उन्हें अंगीकृत कर तदनुसार जरूरतों को ध्यान में रखते हुए संज्ञानात्मक संवेगात्मक तथा सृजनात्मक विकास के अवसर उपलब्ध कराती है।
3. शिक्षा एक मौलिक अधिकार समावेशी शिक्षा शिक्षा के मौलिक अधिकार को सिद्धांत तथा व्यवहारिक रूप से स्वीकार करती है हालांकि शिक्षा के अन्य प्रणाली में भी बच्चों के शिक्षा के अधिकार को सीमित किया गया है परंतु समावेशी शिक्षा पद्धति में इसका अधिकार की भावना सर्वाधिक विद्यमान है इस शिक्षा पद्धति में यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी विद्यालय द्वारा किसी भी निम्न शारीरिक मानसिक तथा आर्थिक स्तर के बच्चों को प्रवेश लेने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता
4. विशिष्ट शैक्षिक जरूरतों वाले बच्चों की स्वीकृति और समर्थन समावेशी शिक्षा विशिष्ट शैक्षिक जरूरतों वाले बच्चों तथा शारीरिक रूप से बाधित श्रवण दृष्टि व वाक बाधित मानसिक रूप से असमर्थ आदि करीब सभी प्रकार के बच्चों को उनकी वर्तमान शारीरिक तथा मानसिक अवस्था में sha वितरित करती है तथा उन्हें समर्थन प्रदान करती है जिससे उन्हें विकास के इष्टतम अवसर प्राप्त हो सके।
5. विभिन्न अदाएं कोई समस्या नहीं है इस शिक्षा पद्धति में बच्चों की बढ़ती हुई विभिन्न नेताओं को कोई समस्या नहीं समझा जाता भाषा धर्म लिंग संस्कृति सामाजिक एवं शारीरिक मानसिक गुणों की विभिन्नता बच्चों को परस्पर सीखने सामाजिक रूप से संबंधित होने एवं समायोजित होने के दुर्लभ अवसर प्रदान कर आती है।
6. विद्यालय का प्रयत्न अभियोजन समावेशी शिक्षा के अंतर्गत स्कूल विद्यार्थियों की जरूरतों के मुताबिक ही अभियोजन करता है इस शिक्षा पद्धति में सामान्य शिक्षण पद्धति की भांति बच्चों को स्कूल के साथ अभियोजन करना पड़ता है।


समावेशी शिक्षा की आवश्यकता है
1. सामान्य मानसिक विकास संभव है अपंग बालक अपने आप को दूसरे बालकों की अपेक्षा कुछ तथा हीन समझते हैं जिसके कारण उनके साथ प्रथक से व्यवहार किया जा रहा है समावेशी शिक्षा व्यवस्था में अंगों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति करने का अवसर प्रदान किया जाता है प्रत्येक बालक सोचता है कि वह किसी भी प्रकार से किसी अन्य बच्चे से तुच्छ रहा है इस प्रकार समावेशी शिक्षा पद्धति बालकों की सामान्य मानसिक प्रगति को अग्रसर करती है।
2. समावेशी शिक्षा कम खर्चीली है निसंदेह विशिष्ट शिक्षा अधिक महंगी है तथा अधिक खर्चीली है इसके अलावा विशिष्ट अध्यापक एवं शिक्षाविदों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी अधिक समय लेता है दूसरे दृष्टिकोण से समावेशी शिक्षा कम खर्चीली है तथा लाभदायक है
3. सामाजिक एकीकरण सुनिश्चित करती है विशिष्ट बच्चे जब सामान में बालकों के साथ शिक्षा पाते हैं अपंग बालक अधिक संख्या में सामान्य बालकों की संगत पाते हैं तथा एक ही कारण के कारण वे सामाजिक गुणों को अन्य बालकों के साथ ग्रहण करते हैं जैसे उनमें सामाजिक नैतिक गुण प्रेम सहानुभूति आपसी सहयोग आदि गुणों का विकास होता है विशिष्ट शिक्षा व्यवस्था में छात्र केवल विशिष्ट ध्यान ही नहीं परंतु विस्तार में शिक्षण तथा सामाजिक स्पर्धा की भावना भी विकसित।
4. शैक्षिक एकीकरण संभव शैक्षिक योग्यता समानता व समावेशी शिक्षा के वातावरण द्वारा संभव है शिक्षाविदों को ऐसा विश्वास है कि विशिष्ट शिक्षा संस्थान एक बालक के प्रवेश के पश्चात सामान शैक्षिक योग्यता रखने वाले अपंग बालक उनके गुणों को ग्रहण करता है। एक प्रकार से कहा जा सकता है कि लचीले वातावरण तथा आधुनिक पाठ्यक्रम के साथ समावेशी शिक्षा शैक्षिक एकीकरण लाती है
5. समानता के सिद्धांत का अनुपालन करता है भारत में सामान्य शिक्षा व्यापक रूप से विस्तार की संवैधानिक व्यवस्था की गई है और साथ-साथ शारीरिक रूप से बाधित बालकों के लिए शिक्षा को व्यापक रूप देना भी संविधान के अंतर्गत दिया गया है समावेशी शिक्षा के वातावरण के माध्यम से समानता के उद्देश्य की भी प्राप्ति की जानी चाहिए जिससे कोई भी छात्र अपने आप को दूसरे की अपेक्षा ही न समझे।


समावेशी शिक्षा का महत्व
1. शैक्षिक वातावरण जब असमर्थ बालक को सामान्य विद्यालय में भेजा जाता है तो वह शैक्षिक तौर पर अपने आप को विद्यालय में समायोजित कर लेता है तथा उसके मन में यह विचार नहीं आता कि वह दूसरे बालकों की अपेक्षा किसी भी क्षेत्र में कम है।
2. कम खर्चीला भारत एक विकासशील देश है तथा विकास के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है असमर्थ बालकों के लिए सभी प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रबंध करने के लिए अधिक पैसे की आवश्यकता होती है इनके लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक मनोवैज्ञानिक तथा डॉक्टर की आवश्यकता पड़ती है जबकि सामान्य विद्यालयों में इस प्रकार की काफी सुविधाएं पहले से ही उपलब्ध होती हैं विशिष्ट बालकों को सामान विद्यालयों में पढ़ाना कम खर्चीला होता है इस दृष्टिकोण से समावेशी शिक्षा अधिक सस्ती है  ।
3. समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान में प्रत्येक बालक को बिना किसी भेदभाव के एक समान शिक्षा देने की बात की गई है हम शिक्षा प्रदान करने के लिए किसी प्रकार के भेदभाव नहीं कर सकते इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए असमर्थ बालकों को समावेशी शिक्षा देने की अति आवश्यकता है।
4. सामाजिक मूल्यों का विकास शिक्षा का उद्देश्य बालकों को केवल शिक्षित करना नहीं बल्कि उनका पूर्ण विकास करना है सामान्य विद्यालयों में असमर्थ बालकों को शिक्षा देने में उन्हें सामाजिक गुणों का भी विकास होता है क्योंकि विद्यालय में समाज के सभी वर्ग के बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं उनके साथ मिलकर असमर्थ बालकों में सामाजिकरण की भावना का विकास होता है इस प्रकार असमर्थ बालकों में भी प्यार दयालुता समायोजन सहायता भाईचारा आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
5. प्राकृतिक वातावरण सामान्य विद्यालयों में असमर्थ बालकों को प्राकृतिक वातावरण प्राप्त होता है जब असमर्थ बालक सामान्य बच्चों के साथ साधारण विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करते हैं तो उनमें इस भावना का विकास नहीं होता कि वह किस प्रकार से सामान्य बालकों से कम है सामान्य बालक भी उनको अपना साथी समझने लग जाते हैं तथा असमर्थ बालक अपने आप को सहजता से उनके साथ समायोजित कर लेते हैं।
6. इस प्रकार तथ्यों को ध्यान में रखकर हम कह सकते हैं कि विशिष्ट शिक्षा की अपेक्षा असमर्थ बालकों को सामान्य विद्यालय में ही शिक्षा प्रदान करनी चाहिए सामान्य शिक्षा के साथ-साथ उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनके लिए विशेष कक्षाओं का प्रबंध करना चाहिए तथा उनके लिए प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापकों का प्रबंध भी करना चाहिए

समावेशी शिक्षा के सिद्धांत

1. व्यक्तिगत रूप से भिन्नता व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक व्यक्ति में भिन्नता पाई जाती है या अभिनेता रंग रूप तथा व्यक्तित्व आदि में पाई जाती है विशिष्ट बालको को उनके व्यक्तित्व आदि के अनुसार ही शिक्षित किया जाता है जैसे प्रतिभावान छात्रों को अधिक विस्तार पूर्वक पढ़ाया जाता है तथा मंदबुद्धि वमन अधिगम बालकों को प्रत्येक कार्य को धीरे-धीरे सिखाया जाता है तथा कुछ बालक ऐसे होते हैं जो बिल्कुल भी रुचि पूर्ण तरीके से पढ़ाई नहीं करते उनको शिक्षा के प्रति जागृत करना ही समावेशी शिक्षा का मुख्य सिद्धांत होता है अतः व्यक्तिगत भी नेताओं के अनुसार ही छात्रों को समावेशी शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
2. माता-पिता का सहयोग प्रदान करना समावेशी शिक्षा के अंतर्गत माता-पिता का सहयोग होना अति आवश्यक है यदि माता-पिता पूर्णता सहयोग देंगे तभी विशिष्ट छात्रों को उचित प्रकार से समावेशी शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
3. विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा शिक्षा विशिष्ट शिक्षा के लिए कई विशिष्ट कार्यक्रमों को लागू किया जाता है शारीरिक रूप से बाधित छात्रों की शिक्षा हेतु उनके माता-पिता को विद्यालय का पूर्व सर्वे करने का अधिकार प्राप्त होता है यदि माता-पिता शिक्षण संस्थान की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं है तो वह इच्छा अनुसार बालक को शिक्षण संस्थान से निकालकर किसी अन्य शिक्षण संस्थान में भेज सकते हैं अतः विशिष्ट बालकों को विशेष कार्यक्रम के द्वारा ही उचित शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
4. वातावरण नियंत्रण पूर्ण होना जहां तक उचित हो प्रत्येक शारीरिक बाधित बालक को निशुल्क उपयुक्त शिक्षा मिलनी चाहिए समानता शिक्षा संस्थाओं में किसी बालक को स्वीकार अथवा शिकार करने का विकल्प किसी विद्यालय की व्यवस्था में नहीं है अतः इन पिछड़े बालकों हेतु विशिष्ट शिक्षा का प्रबंध किया जाना अति आवश्यक होता है तथा विशिष्ट कक्षाएं अवश्य दी जानी चाहिए
समावेशी शिक्षा का कार्य क्षेत्र
समावेशी शिक्षा शारीरिक रूप से बाधित बालकों को निम्न प्रकार की शिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराती है

1. आस्थित बाधित बालक
2. श्रवण बाधित बालक।
3. दृष्टिबाधित अथवा एक आंख वाले बालक।
4. मानसिक मंदिर बालक जो शिक्षा के योग्य हैं
5. विभिन्न प्रकार से अपंग बालक श्रवण बाधित दृष्टिबाधित आदि ।
6. अधिगम असमर्थ  बालक।
7. अंधे छात्र जिन्होंने ब्रेल में पढ़ने और लिखने का शिक्षण प्राप्त कर लिया है तथा उन्हें विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
8. बधिर बालक जिन्होंने संप्रेषण में निपुणता तथा पढ़ना सीख लिया है।
समावेशी शिक्षा क्षेत्र में सामान्य स्कूल जाने से पहले अपंग बालक का प्रशिक्षण माता-पिता को समझना प्रारंभिक शिक्षा तथा उचित शिक्षा +2 और व्यवसायिक शिक्षा में भी सम्मिलित है ।

समावेशी शिक्षा का लाभ
1. नैतिक भी नेताओं के फल स्वरुप समावेशी शिक्षा बालकों में व्यक्तिक भिन्नता है इस सीमा तक होती है जिससे अधिकांश विशिष्ट बालक पूर्ण रूप से वंचित हो जाती हैं इन्हें सामान्य बालकों की श्रेणी में रखकर शिक्षा देना कठिन होता है सामान्य शिक्षण पद्धतियों तथा शिक्षा व्यवस्था से इन्हें लाभ प्राप्त नहीं हो पाता नेत्रहीन बालक सामान्य कक्षाओं में लिख पढ़ नहीं सकती क्योंकि यह देखने में अक्षम होते हैं इनके लिए alert विशेष शिक्षा की आवश्यकता होती है इस प्रकार प्रतिभाशाली बालक तथा मंदबुद्धि बालक सामान्य कक्षाओं से लाभान्वित नहीं हो पाते जिसके कारण इन बालकों के लिए विशेष शिक्षा की व्यवस्था की जाती
2. अधिकतम विकास के लिए जनतंत्र में विशिष्ट बालकों के लिए शिक्षा इसलिए आवश्यक होती है कि इन बालकों का अधिक से अधिक विकास हो सके ताकि उनमें निहित क्षमताएं प्रस्फुटित हो सके जिससे कि भविष्य में अच्छे प्राण बनकर समाज तथा देश को लाभ पहुंचा सके तथा बेशक के साथ मिलकर कार्य कर सकें।
3. कुण्ठा  एवं ग्रंथियों को समाप्त करने के लिए समावेशी शिक्षा मंदबुद्धि तथा पिछड़े बालक सामान्य कक्षाओं में बार-बार असफल होने के फलस्वरूप ग्रंथियों से युक्त हो जाते हैं जिससे कुंठा की मात्रा अधिक हो जाती है जिसके फलस्वरूप उनका विकास अवरुद्ध होने लगता है इसलिए इन से मुक्ति पाने के लिए विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता होती है
4. विशिष्ट बालकों की समस्याओं को समझने के लिए समावेशी शिक्षा अभिभावकों शिक्षकों तथा शिक्षक प्रबंधक विशिष्ट बालकों की समस्याओं को अच्छी तरह समझ कर विशेष शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे उन्हें लाभ प्राप्त हो
5. समस्यात्मक बालक बनने से रोकने के लिए समावेशी शिक्षा यदि विशिष्ट बालकों के लिए विशेष शिक्षा के लिए शिक्षण विधियां पाठ्यक्रम एवं शिक्षकों की उचित व्यवस्था नहीं की जाती है तो वह समस्यात्मक बालक बन जाते हैं इसे दूर करने के लिए विशिष्ट शिक्षा की उचित व्यवस्था उपलब्ध कराई जाती है

Labels:

Thursday 11 February 2021

Sarva Shiksha Abhiyan in English

 Sarva Shiksha Abhiyan


Sarv Shiksha Abhiyan is Government of India's flagship program for achievement of universalization of Elementary Education (UEE) in a a time bound manner as mandate bye 86th ammendment to the the constitution of India making free and compulsory education to the children between the age group of 6 to 14 years a fundamental right
The Sarva Shiksha Abhiyan SSA is is being implemented in in partnership with State government to cover the entire country e e and adress the need of 194 milian childrens

What is Sarva Shiksha Abhiyan?
• A program with a a clear time frame for Universal elementary education.
• Response to the demand for quality basic education all over the country.
• An opportunity for promoting Social Justice through basic education.
• An effort at effectively involving the Panchayati Raj Institute. School management Committee e-village and urban slum level education committee parents teachers and mother teacher associate and other basic level structures.
• And expression of political will for Universal elementary education across the the country.
• A partnership between the central state and the local government.
• An opportunity for States to develop their own vision of elementary education

Basic features of Sarva Shiksha Abhiyan Sarva Shiksha Abhiyan is an referred to universalise elementary education bye bhai community e ownership of the School system. It is a a response to the demand for quality basic education all over the country this program is also and attempt to provide an opportunity for improving human capability to all children through provision of community owned quality education in a mission mode.

Objectives of Sarva Shiksha Abhiyan
1. Open new school in area which do not have them and to to expand existing School infrastructure.
2. Address inadequate teacher numbers and provide training for existing teachers.
3. Provide quality elementary education including life skill with a special focus on the education for girls and children's with special needs.
4. By 2005 all children in the age group of 6 to 14 year are to be enrolled in a school alternative schooling Centre or in back to school camp.
5. Why 2007 all children's in the age group of 6 to 14 year year are to complete 5 years of primary education.
6. Buy 2010 all children in the age group of 6 to 14 year to complete 8 year of elementary education.
7. Focus on elementary education of satisfactory quality with emphasis on education for life.
8. Bridge all Gender and social gaps at primary e stage by 2007 and at elementary education level by 2010
9. Bhai 2010 universal retention.

Aims of Sarva Shiksha Abhiyan

• The Sarva Shiksha Abhiyan is to provide useful and relevant elementary education for all children in age group of 6 to 14 nearby 2010.
• Useful and relevant education signifies quest for an education system that is not alienating and community solidarity. Its aim is 2 allowed children to learn about and master their natural environment in a manner that allows the the fullest harnessing of their human potential both spiritually and materially . This quest most also be a process of value based learning that allows children and opportunity to work for each other well being rather than to permit mere selfish pursuits
• Sarv Shiksha Abhiyan realizese the importance of early childhood care and education and a Continuum

Frame work and program

Framework
A Framework is needed to to formulate context specific guidelines within the overall framework it provides a wide convergent Framework for implementation of Elementary Education scheme. It encourages district in states and union territories to reflect local speciality. The objectives and expressed nationality  through it is expected that various districts and states are likely to achieve universalization in in their own respective context and in their own time frame 2010 is the the outer limit for such achievements.
The emphasis is on mainstreaming out of school children through deserve strategies as far as possible and on providing 8 year of schooling for all children in 6 to 14 year of age to promote local need based planning which is based on board national policy norms. The thrust is on bridging of Gender and social gaps and a total  retention of all children in school. Within this Framework it is expected that the education system will be made relevant so that children and parents find the the cooling system useful and absorbing according to to their nature and social environment.


Programme

Sarv Shiksha Abhiyan is also programme with budget provision for strengthening Vital areas to achieve universalization of elementary education. While all investment in the elementary education sector from the the the state and Central plants will reflect as part of the SSA framework they will merge into the SSA programme within the next few years. As a programme it reflects the additional resource provisions for Universal elementary education.

Financial norms under SSA
The assistance under the program of Sarva Shiksha Abhiyan will be on a 85: 15 sharing management during ninth plan 75 :25 sharing arrangement during 10th plan and 50 : 50 sharing thereafter between the central government and the state government.

Improvement of school facilities and other Civil works
Community participation should be the only e means of undertaking any Civil works in in improvement of school facilities. The SSA would first off of all try to mobilize resource under Rural Employment program and other development scheme for contracting School buildings. The humanity would have to come forward to maintain School facility if any investment is processed in village. The annual support to the community for repair and maintenance is under the Sarva Shiksha Abhiyan the upper  ceiling is rupees 5000 per year based on the actual needs and willingness of the community to contribute. The participation of the community in all civil work activity will be mandatory in order to ensure a sense of of ownership and a departure from contractor driven approaches. Engagement of contractor will not be allowed under the SSA. The school management communities oblique villages education committee Gram Panchayat committee e on education will have to carry out the civil work activities through a transparent system of account keeping these will be mandatory in all SSA districts

Board strategies to Sarva Shiksha Abhiyan
1. Institutional reforms in order to improve the the efficiency of the the delivery system the central and the state government will have to adopt various reforms resumes. This should include educational administration evolution and achievement in schools Finance decentralization and community e worship review of state Education Act teacher development and requirement of teachers girl education st and ST SC and disadvantage groups policy regarding private school and early childhood Care Education.
2.  Finance Sarva Shiksha Abhiyan is based on the promise that financing of elementary education intervention has to be sustainable AL. It require long-term perspective on financial partnership between the the central and the state government
3. Institutional capacity building Sarva Shiksha Abhiyan conceives a a major capacity building role of national stage and district level
4. Community ownership the program calls of community ownership of school based interventions throat effective decentralization. This will be augmented bye involvement of women's groups and members of Panchayati Raj institution.
5. Community base monitoring with full transparency the the programme will have a community based monitoring system the educational management information system EMIS will correlate school level chart with Patti based information from micro planning and surveys. besides this every school will be increased to share all information with the community including the the Grant's received. And notice board will be put up in every school for the purpose.
6. Improving mainstream educational administration it calls for improvement of mainstream educational Administration by institutional development in fusion of new approaches and bi adoption of cost-effective and efficient method.
7. Improvement in quality improvement in quality require a sustainable support system of resource person and institution.
8. Accountability to community Sarva Shiksha Abhiyan envisages cooperation and effective involvement between the Panchayati Raj institution School Management Committee villages and urban slum level education committee parents teachers association mother teacher Association tribal autonomous councils and other grassroot level structures in the management of Elementary School.
9. Priority to education of girls education of girls especially those belonging to the SC and ST minority groups will be one of the principal concern in service Shiksha Abhiyan
10. Focus on special groups there will be from on the inclusion and participation of children from SC ST minority groups urban deprived children disadvantaged groups and the children with special needs.
11. Project phase Sarva Shiksha Abhiyan will commence throughout the country with a well planned tree project phases that provide for a large number of interventions for capacity development to improve the delivery and monitoring system full stop is including provisions of household surveys community based micro planning and school mapping training of community leaders school level activities support for sitting up information system office equipment Diagnostic studies.
12. Thrust on  quality Sarv Shiksha Abhiyan lays a special thrust on making education useful at the elementary level and relievant for children by improving the curriculum child centred activities and effective teaching learning strategies.
13. Role of teachers Sarv Shiksha Abhiyan recognise the central role of teachers and focus on their development needs fullstop requirement of qualified teachers providing opportunities for teachers development throat through participation in curriculum related material development focus on classroom process and exposure visits for teachers are all all designed to develop the human resource among teachers.
14. District elementary education plan each district will prepare a district elementary education plan reflecting all the the investment being made and required in the elementary education sector. There will be a prospective plan that will Al give a framework of activities over a longer time frame to achieve Universal elementary education there will also be and annual work frame and budget that will list the prioritized activities to be carried out in that year.

Role of Non governmental Organisation in SSA
Sarv Shiksha Abhiyan conceive a vibrant partnership with non government Organisation in the area of capacity building both in communities and resource institution. These partnerships will required nurturing  through ongoing partnership in activities. The research evolution monitoring activities under the SSA is is proposed to be done in partnership with institution angios. This this would improve transparency of program intervention and would also increase a more open assessment of achievements full stop in the education sector non government organisation have been making very meaningful contribution example Al work related to pedagogy mainstreaming of school children developing effective teacher training programs organising the the community for capacity development for planning and implementation expressing gender concerns work in the the sphere of disability among children's are some of the example
• Through direct funding by central and state government
• Trough funding activities bye identified National and state resource institution
• Through  participation in community activities funded by village education community.

Labels: , ,

Wednesday 13 January 2021

शिक्षा का अधिकार(,शिक्षा में नवाचार एवं नवीन प्रवृतियां,)

 शिक्षा का अधिकार

शिक्षा के अधिकार का संक्षिप्त विवेचन

1 अप्रैल 2010 से देशभर में लागू शिक्षा का अधिकार आरटीआई कानून में 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान है इस कानून पर अभी सर्व शिक्षा अभियान के तहत अमल किया जा रहा है। वास्तव में आज हम जिस समय का सामना कर रहे हैं उसे बेहद नाजुक समय कहा जा सकता है आज के शिक्षा के ढांचे को देखकर लगता है कि हम आज भी 0 मात्र हैं जहां बड़े शहरों में स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी या उच्च शिक्षा संस्थान है वहीं गांवों और दूर-दराज के इलाकों या कस्बों में निचले स्तर के स्कूल हैं लेकिन टूटे-फूटे भवनों सुविधाओं और तकलीफों के साए में तथा विनय स्टाफ  भला उन्हें कैसे चलाया जा सकता है 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष की उम्र के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है संविधान के 86 में संशोधन द्वारा शिक्षा के अधिकार को प्रभावी  बनाया गया परंतु हम सोचे क्या सही मायने में शिक्षा मुफ्त हुई भी है वास्तव में आज भी हमारे देशों में निरक्षर लोगों की संख्या दुनिया के किसी भी और देश से अधिक है।
भारतीय संविधान को विश्व का सबसे विस्तृत संविधान के रूप में माना जाता है 15 अगस्त सन 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ स्वतंत्रता के पश्चात जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू किया गया इस संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन शिक्षा का अधिकार एक विवक्षित अधिकार है यह अधिकार जीवन सुरक्षा एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति को जीवन सुरक्षा एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। जीवन सुरक्षा एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का यह मूल अधिकार नागरिकों को अपने जीवन को सुरक्षित रखने एवं सार्थक ढंग से जीने की अनुभूति कराता है इस अवधि में शिक्षा प्राप्त करना एक अप्रमाणित अधिकार के रूप में सम्मिलित हो जाता है। अनुच्छेद 41 में कहा गया है कि राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य तथा विकास की सीमाओं के अंतर्गत कार्य प्राप्त करने शिक्षा बेकारी बुढ़ापा बीमारी या असमर्थता अथवा अन्य अभाव की स्थिति में जन सहायता प्राप्त करने के प्रभावी उपाय करेगा अतः यह स्पष्ट है कि राज्य अपनी सीमाओं के अंतर्गत शिक्षा की प्रभावी व्यवस्था करने के संवैधानिक रूप से बाध्य है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में नागरिकों को विचारों की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति तथा रोजगार संबंधी जो अधिकार दिए गए हैं वह भी शिक्षा के अधिकार की ओर संकेत करते हैं सन 2002 में 86 में संविधान के संशोधन के द्वारा भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 का को सम्मिलित किया गया जिसमें प्रारंभिक शिक्षा को नागरिक का मूल अधिकार बना दिया गया अनुच्छेद 21 क मैं कहा गया है कि राज्य द्वारा 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों को निशुल्क शिक्षा एवं अनिवार्य शिक्षा यथा निर्धारित मौलिक अधिकार के रूप में दी जाए गी। निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा बाल विकास का अधिकार अधिनियम 2009 अनुच्छेद 21 क के अंतर्गत परिकल्पित अनुवर्ती विधान का प्रतिनिधित्व करता है जिसका अर्थ प्रत्येक बच्चे को कुछ आवश्यक मानदंडों एवं मानकों को पूरा करने वाले औपचारिक विद्यालयों में संतोषप्रद एवं गुणवत्तापूर्ण पूर्वकालिक प्राथमिक शिक्षा का अधिकार प्रदान करना है। 1 अप्रैल 2010 से शिक्षा का अधिकार प्रभावी हुआ आरटीई अधिनियम के शीर्षक में निशुल्क एवं अनिवार्य शब्द सम्मिलित हैं निशुल्क शिक्षा का अर्थ है कि किसी बालक को उसके माता पिता सरकार के द्वारा स्थापित विद्यालय से अधिक विद्यालयों में प्रवेश दिलाते हैं तो प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने पर हुए व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए कोई दवा नहीं कर सकते अनिवार्य शिक्षा शब्द से तात्पर्य सरकार द्वारा स्थापित विद्यालयों में 6 से 14 वर्ष तक आयु के प्रत्येक बालक का अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा में प्रवेश दिलाने उपस्थित तथा उसे प्रारंभिक शिक्षा का पूर्ण कराने को सुनिश्चित करने की बाध्यता से है
प्रारंभिक शिक्षा के लिए प्रावधान
सन 2009 में आरटीई अधिनियम में निम्नलिखित प्रावधान है
नजदीक के विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण होने तक बालक को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रारंभिक शिक्षा से तात्पर्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करना है। यह अधिनियम गैर दाख़िल बच्चे की आयु के अनुरूप कक्षा में प्रवेश का प्रावधान करता है यह निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने तथा केंद्र राज्य एवं राज्य सरकारों के मध्य वित्तीय एवं अन्य उत्तरदायित्व की भागीदारी में उपरोक्त  संस्कारों स्थानीय प्राधिकरण एवं अभिभावकों के कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व को दर्शाता है शिक्षक छात्र अनुपात भवन निर्माण स्कूल के कार्य घंटों शिक्षकों के कार्य घंटों से संबंधित मानक एवं मानदंड निर्धारित करता है यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षक छात्र अनुपात प्रत्येक स्कूल में लागू किया जाए तथा राज्य जिला या ब्लॉक स्तर के पदों में ग्रामीण शहरी का संतुलन भी रखा जाए यह शिक्षकों की तर्कसंगत नियुक्ति का प्रावधान करता है। यह 10 वर्षीय जनगणना स्थानीय प्राधिकरण राज्य विधान मंडल एवं संसद के चुनावों तथा आपदा राहत को छोड़कर गैर शैक्षिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति का निषेध करता है। यह प्रशिक्षित शिक्षकों अर्थात अपेक्षित शैक्षिक योग्यता वाले शिक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान करता है यह शारीरिक दंड मानसिक उत्पीड़न बच्चों के प्रवेश के लिए स्क्रीनिंग प्रक्रिया कैपिटेशन फीस शिक्षकों द्वारा निजी शिक्षण तथा मान्यता रहित विद्यालय के संचालन का निषेध करता है यह संविधान में निर्धारित मूल्य तथा मूल्यों के अनुरूप पाठ्यक्रम के विकास का प्रावधान करता है जो  ज्ञान बालक को ज्ञान क्षमता एवं प्रतिभा का निर्माण करते हुए बहुमुखी विकास को सुनिश्चित कर सकेगा।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के उद्देश्य
शिक्षा का अधिकार अधिनियम मिशन है-
शिक्षा का राष्ट्रीय और   समन्वित  स्वरूप लागू करने के लिए राज्यों और संघ राज्यों को भागीदार बनाना। सभी बच्चों को प्राथमिक स्तर पर निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा सुलभ कराना उत्तम विद्यालय शिक्षा एवं साक्षरता की सहायता से संवैधानिक मूल्यों को समर्पित समाज का निर्माण करना। उत्तम माध्यमिक शिक्षा के लिए अवसरों को सार्वभौमिक बनाना तथा विश्व स्तरीय शिक्षा पाठ्यचर्या तैयार करना जिससे बालकों में योग्यताओं का विकास किया जा सके। कमजोर बच्चों के अतिरिक्त वंचित वर्गों को भी सम्मिलित करके माध्यमिक शिक्षा प्रणाली को सामान बनाना। वर्तमान संस्थानों को उन्नत करके और नवीन संस्थानों की स्थापना करके शिक्षा के उत्तम एवं उन्नत स्तर को सुनिश्चित करना।

शैक्षिक कार्यक्रम
•  प्रारंभिक स्तर सर्व शिक्षा अभियान और मध्यान भोजन व्यवस्था करना
•  माध्यमिक स्तर पर राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा अभियान आदर्श विद्यालय
•  व्यवसायिक शिक्षा
• बालिका छात्रावास
• समन्वित  शिक्षा आईसीटी स्कूल
• प्रौढ़ शिक्षा साक्षर भारत
• अध्यापक शिक्षा
• महिला शिक्षा महिला सामाख्या
• अल्पसंख्यक शिक्षा मदरसों में उत्तम शिक्षा प्रदान करने की योजना
• अल्पसंख्यक संस्थानों का विकास

Labels: , ,

Sunday 13 December 2020

आदर्शवाद और शिक्षक

  आदर्शवाद और शिक्षक

आदर्शवादी विचारकों के अनुसार शिक्षक का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षक ही वह व्यक्ति है जो अपने ज्ञान आदर्श अनुभव और सद्गुणों से बालक को प्रभावित करता है और उसके आदर्श व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक होता है यही कारण है कि फ्रोबेल ने एक अध्यापक को माली के समान बताया है उनके अनुसार जिस प्रकार बगीचे में लगे पौधे को उचित पोषण के लिए माली की आवश्यकता होती है उसी प्रकार विद्यालय में अध्यापक भी बालकों के लिए उपर्युक्त शैक्षिक वातावरण प्रस्तुत करके उनके विकास में सहायक होता है।

 आदर्शवाद और विद्यालय

आदर्श वादियों के अनुसार विद्यालय एक सर्वाधिक शिक्षा का केंद्र है इसे हर प्रकार से आदर्श होना चाहिए विद्यालय का शैक्षिक और सामाजिक परिवेश आदर्श पूर्ण होना चाहिए वहां के आचार्य और प्राचार्य चरित्रवान और अनुकरणीय होने चाहिए तथा वहां का भौतिक परिवेश भी सुंदर अनुभूति वाला होना चाहिए इस प्रकार से आदर्शवादी विचारक विद्यालय में अनुशासन और आदर्श को सु विकसित करने पर बल देते हैं।

आदर्शवाद और शिक्षार्थी

आदर्शवादी विचारक शिक्षा को बाल केंद्रित नहीं मानते उनके अनुसार शिक्षा आदर्श और विचार केंद्रित होनी चाहिए आदर्श शिक्षा में शिक्षार्थी का मार्ग निर्देशन इस प्रकार करता है कि बालक स्वयं ही अपनी अंतर्निहित शक्तियों को पहचान सके और उच्च आदर्शो और विचारों को प्राप्त करने में समर्थ हो सके।

आदर्शवाद और अनुशासन

आदर्श वाद विचारक शिक्षा में प्रभाव आत्मक अनुशासन के कठोर पक्षपाती थे उनका विश्वास था कि अनुशासन में रहकर बालक का पूर्ण विकास संभव है अनुशासन के द्वारा ही वह आत्मानुभूति कर सकता है और उसके आध्यात्मिक गुणों का विकास हो सकता है आदर्शवाद विचारक अनुशासन पर बल देते थे परंतु वह धनात्मक अनुशासन के पक्ष में नहीं होते थे क्योंकि इसके द्वारा बालक का विकास अवरूद्ध हो सकता है

आदर्शवाद के गुण

आदर्शवादी शिक्षा में बालकों को सर्वमान्य मूल्यों को विकसित करने पर बल दिया गया शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण विस्तृत रूप में किया गया आदर्श शिक्षक शिक्षक को सर्वोपरि मानते हैं आदर्शवाद धनात्मक अनुशासन का विरोध करता है और आत्मानुशासन के सिद्धांत पर बल देता है आदर्शवाद शिक्षा में व्यक्ति और समाज दोनों को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों को समान महत्व दिया गया है आदर्शवाद शिक्षा बाल केंद्रित नहीं थी लेकिन इसमें बालक के व्यक्ति का आदर किया जाता है आदर्शवाद शिक्षा आध्यात्मिक और धार्मिक नैतिक गुणों पर बल देता है।

आदर्शवाद के दोष

आदर्शवादी शिक्षा सैद्धांतिक अधिक थी और व्यवहारिक कम वर्तमान युग भौतिक युग है आज व्यक्ति के सामने विभिन्न प्रकार की भौतिक समस्याएं जिनके समाधान के लिए भौतिक विषयों को ही पढ़ाए जाने की आवश्यकता है परंतु आदर्शवाद में अध्यात्म पर ही अधिक बल दिया जाता है जो आज के समय की समस्याओं के लिए बिल्कुल उचित नहीं थी आदर्शवाद में शिक्षा बाल केंद्रित नहीं थी शिक्षक को ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था आदर्श वादियों ने शिक्षा को किसी निश्चित शिक्षण विधि का प्रतिपादन नहीं किया आदर्शवाद शिक्षा के पाठ्यक्रम में व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन से संबंधित विषयों को ही महत्व दिया जाता था।


Labels: , ,