Thursday 18 March 2021

समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं महत्व

 समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं महत्व

Unit 1
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इस अध्याय से आने वाले प्रश्न इस प्रकार हैं

दीर्घ प्रश्न
1. समावेशी शिक्षा की अवधारणा बताइए तथा इसकी विशेषताओं का विस्तृत वर्णन करते हुए इसकी आवश्यकता एवं महत्व को बताइए।
2.
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. समावेशी शिक्षा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
2. समावेशी शिक्षा की किन्हीं दो परिभाषा को स्पष्ट कीजिए
3. समावेशी शिक्षा के सिद्धांत को बताइए
4. समावेशी शिक्षा के कार्य क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए

उत्तर -
समावेशी शिक्षा की अवधारणा

समावेशी शिक्षा वह शिक्षा है जिसमें सामान्य विद्यालय में बाधित व सामान्य बालकों को एक साथ शिक्षा प्रदान की जाती है.
  शिक्षा शास्त्रियों व मनोवैज्ञानिकों में इस बात को लेकर काफी मतभेद रहे हैं कि बालकों को विशिष्ट शिक्षा विशिष्ट विद्यालयों में दी जाए या फिर इनको भी सामान विद्यालयों में ही बढ़ाया जाए अतः यह निर्णय लिया गया कि जहां तक संभव हो इस प्रकार के बालकों को सामान्य विद्यालयों में ही पढ़ाया जाए ताकि उनमें हीन भावना ना आए और मुख्यधारा से अलग ना हो।
विद्यालयों में विभिन्न प्रकार के बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं जो बच्चा शारीरिक रूप से विकलांग होता है वह एकदम से पहचाना जाता है लेकिन जो बालक मानसिक रूप से बाधित होते हैं उनकी पहचान करना काफी मुश्किल कार्य है जो बालक शारीरिक या मानसिक रूप से अपंग होते हैं वह सामान्य बच्चों की अपेक्षा कुछ कम सीख पाते हैं विशिष्ट शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार के बच्चों में छिपी हुई योग्यता को उभारना है ताकि उसकी योग्यता का प्रयोग देश के हित में किया जा सके।
समावेशी शिक्षा का प्रत्यय अभी नया नया है तथा सामान्य लोगों ने इसका महत्व समझना शुरू कर दिया है स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक प्रभावी रूप से काम कर रहे हैं शिक्षा शास्त्री मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि बच्चों को विशेष विद्यालयों की अपेक्षा सामान्य विद्यालयों में ही शिक्षा देनी चाहिए अमेरिका में 1975 ईस्वी में अमेरिका कांग्रेस ने प्रत्येक अक्षम बच्चे को शिक्षा का एक कानून पास किया था इस कानून का मुख्य उद्देश्य अक्षम बालकों को देश की मुख्यधारा से जोड़ना था मुख्यधारा से या अभिप्राय है कि शारीरिक तथा मानसिक दोष वाले बालक सामान्य बालकों के साथ पड़ेंगे तथा उनको विशेष प्रकार की सहायता दी जाएगी
समावेशी शिक्षा के अंतर्गत सभी प्रकार के असमर्थ बालकों को सामान्य कक्षाओं में नहीं पढ़ाया जा सकता इसका मुख्य उद्देश्य है कि असमर्थ बालकों को सभी सामान्य कक्षा में डाला जाए जब वहां का वातावरण उनकी आवश्यकताओं के अनुकूल हों और वे अपने आपको दूसरे बच्चों से अलग महसूस ना करें।

समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा
समावेशित शिक्षा शारीरिक और मानसिक रूप से क्षतिग्रस्त बालकों को सामान्य बालकों के साथ सामान्य कक्षा में शिक्षा ग्रहण करने पर जोर देती है और विशिष्ट बालकों की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुमोदन करती है यदि किसी विशिष्ट बालक को विशेष शिक्षा और सहायता की आवश्यकता होती है तो उसे विशिष्ट या अपंग न कहकर उसकी आवश्यकता अनुसार शिक्षा तथा मदद दी जाती है इस प्रकार समावेशित शिक्षा में मुख्यधारा तथा एकीकरण का सहारा लेकर सभी बालकों को एक साथ शिक्षित करने का उद्देश्य पर बल दिया जाता है।

समावेशी शिक्षा की परिभाषा

स्टेनबैक एवं स्टेनबैक- का विचार है कि समावेशी विद्यालय अथवा पर्यावरण से अभिप्राय ऐसे स्थान से है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपने को सदस्य मानता है जिसको अपना समझता है जो अपने साथियों और विद्यालय कुटुंब के प्रत्येक सदस्य की सहायता करता है और अपनी शिक्षा प्राप्ति संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उनसे सहायता प्राप्त करता है

आडवाणी और चड्ढा का विचार है कि समावेशी शिक्षा का उद्देश्य एक सहायक तथा अनुकूल पर्यावरण की रचना करना है ताकि सभी को पूर्ण प्रतिभा गीता के लिए समान अवसर प्राप्त हो सके और इस तरह से विशेष आवश्यकता वाले बालक शिक्षा की मुख्यधारा के क्षेत्र में सम्मिलित हो सके

समावेशी शिक्षा की विशेषताएं
1. सभी के लिए विद्यालय में सभी हेतु शिक्षा समावेशी शिक्षा के अंतर्गत बाधित शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों एवं सामान्य बच्चों हेतु सभी स्कूलों में सभी के लिए शिक्षा का प्रावधान किया गया है।
2.  विशिष्टता की पहचान तथा चिंता करना समावेशी शिक्षा पद्धति बच्चों की शारीरिक बौद्धिक मानसिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक आदि अनेक विभिन्न नेताओं की पहचान करती है उन्हें अंगीकृत कर तदनुसार जरूरतों को ध्यान में रखते हुए संज्ञानात्मक संवेगात्मक तथा सृजनात्मक विकास के अवसर उपलब्ध कराती है।
3. शिक्षा एक मौलिक अधिकार समावेशी शिक्षा शिक्षा के मौलिक अधिकार को सिद्धांत तथा व्यवहारिक रूप से स्वीकार करती है हालांकि शिक्षा के अन्य प्रणाली में भी बच्चों के शिक्षा के अधिकार को सीमित किया गया है परंतु समावेशी शिक्षा पद्धति में इसका अधिकार की भावना सर्वाधिक विद्यमान है इस शिक्षा पद्धति में यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी विद्यालय द्वारा किसी भी निम्न शारीरिक मानसिक तथा आर्थिक स्तर के बच्चों को प्रवेश लेने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता
4. विशिष्ट शैक्षिक जरूरतों वाले बच्चों की स्वीकृति और समर्थन समावेशी शिक्षा विशिष्ट शैक्षिक जरूरतों वाले बच्चों तथा शारीरिक रूप से बाधित श्रवण दृष्टि व वाक बाधित मानसिक रूप से असमर्थ आदि करीब सभी प्रकार के बच्चों को उनकी वर्तमान शारीरिक तथा मानसिक अवस्था में sha वितरित करती है तथा उन्हें समर्थन प्रदान करती है जिससे उन्हें विकास के इष्टतम अवसर प्राप्त हो सके।
5. विभिन्न अदाएं कोई समस्या नहीं है इस शिक्षा पद्धति में बच्चों की बढ़ती हुई विभिन्न नेताओं को कोई समस्या नहीं समझा जाता भाषा धर्म लिंग संस्कृति सामाजिक एवं शारीरिक मानसिक गुणों की विभिन्नता बच्चों को परस्पर सीखने सामाजिक रूप से संबंधित होने एवं समायोजित होने के दुर्लभ अवसर प्रदान कर आती है।
6. विद्यालय का प्रयत्न अभियोजन समावेशी शिक्षा के अंतर्गत स्कूल विद्यार्थियों की जरूरतों के मुताबिक ही अभियोजन करता है इस शिक्षा पद्धति में सामान्य शिक्षण पद्धति की भांति बच्चों को स्कूल के साथ अभियोजन करना पड़ता है।


समावेशी शिक्षा की आवश्यकता है
1. सामान्य मानसिक विकास संभव है अपंग बालक अपने आप को दूसरे बालकों की अपेक्षा कुछ तथा हीन समझते हैं जिसके कारण उनके साथ प्रथक से व्यवहार किया जा रहा है समावेशी शिक्षा व्यवस्था में अंगों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति करने का अवसर प्रदान किया जाता है प्रत्येक बालक सोचता है कि वह किसी भी प्रकार से किसी अन्य बच्चे से तुच्छ रहा है इस प्रकार समावेशी शिक्षा पद्धति बालकों की सामान्य मानसिक प्रगति को अग्रसर करती है।
2. समावेशी शिक्षा कम खर्चीली है निसंदेह विशिष्ट शिक्षा अधिक महंगी है तथा अधिक खर्चीली है इसके अलावा विशिष्ट अध्यापक एवं शिक्षाविदों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी अधिक समय लेता है दूसरे दृष्टिकोण से समावेशी शिक्षा कम खर्चीली है तथा लाभदायक है
3. सामाजिक एकीकरण सुनिश्चित करती है विशिष्ट बच्चे जब सामान में बालकों के साथ शिक्षा पाते हैं अपंग बालक अधिक संख्या में सामान्य बालकों की संगत पाते हैं तथा एक ही कारण के कारण वे सामाजिक गुणों को अन्य बालकों के साथ ग्रहण करते हैं जैसे उनमें सामाजिक नैतिक गुण प्रेम सहानुभूति आपसी सहयोग आदि गुणों का विकास होता है विशिष्ट शिक्षा व्यवस्था में छात्र केवल विशिष्ट ध्यान ही नहीं परंतु विस्तार में शिक्षण तथा सामाजिक स्पर्धा की भावना भी विकसित।
4. शैक्षिक एकीकरण संभव शैक्षिक योग्यता समानता व समावेशी शिक्षा के वातावरण द्वारा संभव है शिक्षाविदों को ऐसा विश्वास है कि विशिष्ट शिक्षा संस्थान एक बालक के प्रवेश के पश्चात सामान शैक्षिक योग्यता रखने वाले अपंग बालक उनके गुणों को ग्रहण करता है। एक प्रकार से कहा जा सकता है कि लचीले वातावरण तथा आधुनिक पाठ्यक्रम के साथ समावेशी शिक्षा शैक्षिक एकीकरण लाती है
5. समानता के सिद्धांत का अनुपालन करता है भारत में सामान्य शिक्षा व्यापक रूप से विस्तार की संवैधानिक व्यवस्था की गई है और साथ-साथ शारीरिक रूप से बाधित बालकों के लिए शिक्षा को व्यापक रूप देना भी संविधान के अंतर्गत दिया गया है समावेशी शिक्षा के वातावरण के माध्यम से समानता के उद्देश्य की भी प्राप्ति की जानी चाहिए जिससे कोई भी छात्र अपने आप को दूसरे की अपेक्षा ही न समझे।


समावेशी शिक्षा का महत्व
1. शैक्षिक वातावरण जब असमर्थ बालक को सामान्य विद्यालय में भेजा जाता है तो वह शैक्षिक तौर पर अपने आप को विद्यालय में समायोजित कर लेता है तथा उसके मन में यह विचार नहीं आता कि वह दूसरे बालकों की अपेक्षा किसी भी क्षेत्र में कम है।
2. कम खर्चीला भारत एक विकासशील देश है तथा विकास के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है असमर्थ बालकों के लिए सभी प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रबंध करने के लिए अधिक पैसे की आवश्यकता होती है इनके लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक मनोवैज्ञानिक तथा डॉक्टर की आवश्यकता पड़ती है जबकि सामान्य विद्यालयों में इस प्रकार की काफी सुविधाएं पहले से ही उपलब्ध होती हैं विशिष्ट बालकों को सामान विद्यालयों में पढ़ाना कम खर्चीला होता है इस दृष्टिकोण से समावेशी शिक्षा अधिक सस्ती है  ।
3. समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान में प्रत्येक बालक को बिना किसी भेदभाव के एक समान शिक्षा देने की बात की गई है हम शिक्षा प्रदान करने के लिए किसी प्रकार के भेदभाव नहीं कर सकते इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए असमर्थ बालकों को समावेशी शिक्षा देने की अति आवश्यकता है।
4. सामाजिक मूल्यों का विकास शिक्षा का उद्देश्य बालकों को केवल शिक्षित करना नहीं बल्कि उनका पूर्ण विकास करना है सामान्य विद्यालयों में असमर्थ बालकों को शिक्षा देने में उन्हें सामाजिक गुणों का भी विकास होता है क्योंकि विद्यालय में समाज के सभी वर्ग के बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं उनके साथ मिलकर असमर्थ बालकों में सामाजिकरण की भावना का विकास होता है इस प्रकार असमर्थ बालकों में भी प्यार दयालुता समायोजन सहायता भाईचारा आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
5. प्राकृतिक वातावरण सामान्य विद्यालयों में असमर्थ बालकों को प्राकृतिक वातावरण प्राप्त होता है जब असमर्थ बालक सामान्य बच्चों के साथ साधारण विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करते हैं तो उनमें इस भावना का विकास नहीं होता कि वह किस प्रकार से सामान्य बालकों से कम है सामान्य बालक भी उनको अपना साथी समझने लग जाते हैं तथा असमर्थ बालक अपने आप को सहजता से उनके साथ समायोजित कर लेते हैं।
6. इस प्रकार तथ्यों को ध्यान में रखकर हम कह सकते हैं कि विशिष्ट शिक्षा की अपेक्षा असमर्थ बालकों को सामान्य विद्यालय में ही शिक्षा प्रदान करनी चाहिए सामान्य शिक्षा के साथ-साथ उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनके लिए विशेष कक्षाओं का प्रबंध करना चाहिए तथा उनके लिए प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापकों का प्रबंध भी करना चाहिए

समावेशी शिक्षा के सिद्धांत

1. व्यक्तिगत रूप से भिन्नता व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक व्यक्ति में भिन्नता पाई जाती है या अभिनेता रंग रूप तथा व्यक्तित्व आदि में पाई जाती है विशिष्ट बालको को उनके व्यक्तित्व आदि के अनुसार ही शिक्षित किया जाता है जैसे प्रतिभावान छात्रों को अधिक विस्तार पूर्वक पढ़ाया जाता है तथा मंदबुद्धि वमन अधिगम बालकों को प्रत्येक कार्य को धीरे-धीरे सिखाया जाता है तथा कुछ बालक ऐसे होते हैं जो बिल्कुल भी रुचि पूर्ण तरीके से पढ़ाई नहीं करते उनको शिक्षा के प्रति जागृत करना ही समावेशी शिक्षा का मुख्य सिद्धांत होता है अतः व्यक्तिगत भी नेताओं के अनुसार ही छात्रों को समावेशी शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
2. माता-पिता का सहयोग प्रदान करना समावेशी शिक्षा के अंतर्गत माता-पिता का सहयोग होना अति आवश्यक है यदि माता-पिता पूर्णता सहयोग देंगे तभी विशिष्ट छात्रों को उचित प्रकार से समावेशी शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
3. विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा शिक्षा विशिष्ट शिक्षा के लिए कई विशिष्ट कार्यक्रमों को लागू किया जाता है शारीरिक रूप से बाधित छात्रों की शिक्षा हेतु उनके माता-पिता को विद्यालय का पूर्व सर्वे करने का अधिकार प्राप्त होता है यदि माता-पिता शिक्षण संस्थान की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं है तो वह इच्छा अनुसार बालक को शिक्षण संस्थान से निकालकर किसी अन्य शिक्षण संस्थान में भेज सकते हैं अतः विशिष्ट बालकों को विशेष कार्यक्रम के द्वारा ही उचित शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
4. वातावरण नियंत्रण पूर्ण होना जहां तक उचित हो प्रत्येक शारीरिक बाधित बालक को निशुल्क उपयुक्त शिक्षा मिलनी चाहिए समानता शिक्षा संस्थाओं में किसी बालक को स्वीकार अथवा शिकार करने का विकल्प किसी विद्यालय की व्यवस्था में नहीं है अतः इन पिछड़े बालकों हेतु विशिष्ट शिक्षा का प्रबंध किया जाना अति आवश्यक होता है तथा विशिष्ट कक्षाएं अवश्य दी जानी चाहिए
समावेशी शिक्षा का कार्य क्षेत्र
समावेशी शिक्षा शारीरिक रूप से बाधित बालकों को निम्न प्रकार की शिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराती है

1. आस्थित बाधित बालक
2. श्रवण बाधित बालक।
3. दृष्टिबाधित अथवा एक आंख वाले बालक।
4. मानसिक मंदिर बालक जो शिक्षा के योग्य हैं
5. विभिन्न प्रकार से अपंग बालक श्रवण बाधित दृष्टिबाधित आदि ।
6. अधिगम असमर्थ  बालक।
7. अंधे छात्र जिन्होंने ब्रेल में पढ़ने और लिखने का शिक्षण प्राप्त कर लिया है तथा उन्हें विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
8. बधिर बालक जिन्होंने संप्रेषण में निपुणता तथा पढ़ना सीख लिया है।
समावेशी शिक्षा क्षेत्र में सामान्य स्कूल जाने से पहले अपंग बालक का प्रशिक्षण माता-पिता को समझना प्रारंभिक शिक्षा तथा उचित शिक्षा +2 और व्यवसायिक शिक्षा में भी सम्मिलित है ।

समावेशी शिक्षा का लाभ
1. नैतिक भी नेताओं के फल स्वरुप समावेशी शिक्षा बालकों में व्यक्तिक भिन्नता है इस सीमा तक होती है जिससे अधिकांश विशिष्ट बालक पूर्ण रूप से वंचित हो जाती हैं इन्हें सामान्य बालकों की श्रेणी में रखकर शिक्षा देना कठिन होता है सामान्य शिक्षण पद्धतियों तथा शिक्षा व्यवस्था से इन्हें लाभ प्राप्त नहीं हो पाता नेत्रहीन बालक सामान्य कक्षाओं में लिख पढ़ नहीं सकती क्योंकि यह देखने में अक्षम होते हैं इनके लिए alert विशेष शिक्षा की आवश्यकता होती है इस प्रकार प्रतिभाशाली बालक तथा मंदबुद्धि बालक सामान्य कक्षाओं से लाभान्वित नहीं हो पाते जिसके कारण इन बालकों के लिए विशेष शिक्षा की व्यवस्था की जाती
2. अधिकतम विकास के लिए जनतंत्र में विशिष्ट बालकों के लिए शिक्षा इसलिए आवश्यक होती है कि इन बालकों का अधिक से अधिक विकास हो सके ताकि उनमें निहित क्षमताएं प्रस्फुटित हो सके जिससे कि भविष्य में अच्छे प्राण बनकर समाज तथा देश को लाभ पहुंचा सके तथा बेशक के साथ मिलकर कार्य कर सकें।
3. कुण्ठा  एवं ग्रंथियों को समाप्त करने के लिए समावेशी शिक्षा मंदबुद्धि तथा पिछड़े बालक सामान्य कक्षाओं में बार-बार असफल होने के फलस्वरूप ग्रंथियों से युक्त हो जाते हैं जिससे कुंठा की मात्रा अधिक हो जाती है जिसके फलस्वरूप उनका विकास अवरुद्ध होने लगता है इसलिए इन से मुक्ति पाने के लिए विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता होती है
4. विशिष्ट बालकों की समस्याओं को समझने के लिए समावेशी शिक्षा अभिभावकों शिक्षकों तथा शिक्षक प्रबंधक विशिष्ट बालकों की समस्याओं को अच्छी तरह समझ कर विशेष शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे उन्हें लाभ प्राप्त हो
5. समस्यात्मक बालक बनने से रोकने के लिए समावेशी शिक्षा यदि विशिष्ट बालकों के लिए विशेष शिक्षा के लिए शिक्षण विधियां पाठ्यक्रम एवं शिक्षकों की उचित व्यवस्था नहीं की जाती है तो वह समस्यात्मक बालक बन जाते हैं इसे दूर करने के लिए विशिष्ट शिक्षा की उचित व्यवस्था उपलब्ध कराई जाती है

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